लघु कथा – गुरुदेव ओशो

लघु कथा – गुरुदेव ओशो

१.

सुना है मैंने कि एक गांव में बड़ी बेकारी के दिन थे । अकाल पड़ा था और लोग बहुत मुश्किल में थे। एक सर्कस गुजर रहा था गांव से। स्कूल का एक मास्टर नौकरी से अलग कर दिया गया था। उसने सर्कस वालों से प्रार्थना की कि कोई काम मुझे दे दो। सर्कस के लोगों ने कहा कि सर्कस का तुम्हें कोई अनुभव नहीं है।

उसने कहा, बहुत अनुभव है। स्कूल सिवाय सर्कस के और कुछ भी नहीं है। मुझे जगह दे दो। कोई और जगह तो न थी, लेकिन एक जगह सर्कस वालों ने खोज ली, उसे जगह दे दी गई। और काम यह था कि उसके शरीर पर शेर की खाल चढ़ा दी, पूरे शरीर पर; और उसे एक शेर का काम करना था। एक रस्सी पर उसे चलना था शेर की तरह।

चल जाता, कोई कठिनाई न आती। लेकिन जब वह पहले ही दिन बीच रस्सी पर था, तभी उसे दिखाई पड़ा कि उसके स्कूल के दस-पंद्रह लड़के सर्कस देखने आए हैं और उसे गौर से देख रहे हैं। नर्वस हो गया। मास्टर लड़कों को देखकर एकदम नर्वस हो जाते हैं। घबड़ा गया और गिर पड़ा। गिर पड़ा नीचे, जहां कि चार-आठ दूसरे शेर गुर्रा रहे थे, और चिल्ला रहे थे, और गरज रहे थे, और घूम रहे थे नीचे के कठघरे में। जब शेरों के बीच में घुसा, गिरा, तो घबड़ा गया। भूल गया कि मैं शेर हूं। याद आया कि मास्टर हूं। दोनों हाथ ऊंचे उठाकर चिल्लाया कि मरा, अब बचना मुश्किल है!

जनता उसके उस चमत्कार से उतनी चमत्कृत नहीं हुई थी, रस्सी पर चलने से, जितनी इससे चमत्कृत हुई कि शेर आदमी की तरह बोल रहा है दोनों हाथ उठाकर !

बाकी एक शेर, जो पास ही गुर्रा रहा था, उसने धीरे से कहा कि | मास्टर, घबड़ा मत। तू क्या सोचता है, तू ही अकेला बेकार है गांव में? घबड़ा मत। तू अकेला ही थोड़े बेकार है गांव में, और लोग भी बेकार हैं। वे जो चार शेर नीचे घूम रहे थे, वे भी आदमी ही थे!

हम सबकी हालत वैसी ही है। आप ही झूठा चेहरा लगाकर घूम रहे हैं, ऐसा नहीं है। आप जिससे बात कर रहे हैं, वह भी घूम रहा है। आप जिससे मिल रहे हैं, वह भी घूम रहा है। आप जिससे डर रहे हैं, वह भी घूम रहा है। आप जिसको डरा रहे हैं, वह भी घूम रहा है।

आप ही अकेले नहीं हैं, यह पूरा का पूरा समाज, चेहरों का समाज है। इतने चेहरों की जरूरत इसलिए पड़ती है कि हमें अपने पर कोई भरोसा नहीं। हम भीतर हैं ही नहीं। अगर हम इन चेहरों को छोड़ दें, तो हम पैर भी न उठा सकेंगे, एक शब्द न निकाल सकेंगे। क्योंकि भीतर कोई है तो नहीं मजबूती से खड़ा हुआ, कोई क्रिस्टलाइज्ड  बीइंग, कोई युक्त आत्मा तो भीतर नहीं है। तो हमें सब पहले से तैयारी करनी पड़ती है।

२.

मैं एक कहानी निरंतर कहता रहा हूं। मैं कहता रहा हूं कि जापान का एक चित्रकार बांसों का एक झुरमुट बना रहा है, वंशीवट बना रहा है; एक झेन फकीर लेकिन उसका गुरु कभी- कभी पास से । निकलता है और कहता है कि क्या बेकार और वह बेचारा अपने बनाए हुए चित्रों को फेंक देता है। फिर एक दिन वह गुरु के पास जाता है कि मैं कितना ही सुंदर बनाता हूं, लेकिन तुम हो कि कह ही देते हो कि बेकार और मुझे फाड़ना पड़ता है। मैं क्या करूं?

उसके गुरु ने कहा, पहले तू बांस हो जा, तब तू बांस का चित्र बना पाएगा। उसने कहा कि यह कैसे हो सकता है कि मैं बांस हो जाऊं? उसके गुरु ने कहा, तू जा आदमी की दुनिया को छोड़ दे बांसों की दुनिया में चला जा । उन्हीं के पास बैठना, उन्हीं के पास सोना; उनसे बात करना चीत करना, उन्हें प्रेम करना; उनको आत्मसात करना, इंबाइब करना, उनको पी जाना, उनको खून और हृदय में घुल जाने देना। उसने कहा कि मैं तो बातचीत करूंगा, लेकिन बांस? उसने कहा, तू फिक्र तो मत कर आदमी भर बोले, वृक्ष तो बोलने को सदा तैयार हैं। लेकिन इतने सज्जन हैं कि अपनी तरफ से मौन नहीं तोड़ते। तू जा।

गया। एक वर्ष बीता। दो वर्ष बीते। तीन वर्ष बीते। गुरु ने खबर भेजी कि जाकर देखो, उसका क्या हुआ? ऐसा लगता है कि वह बांस हो गया होगा। आश्रम के अंतेवासी खोज करने गए। बांसों की एक झुरमुट में वह खड़ा था। हवाएं बहती थीं। बांस डोलते थे। वह भी डोलता था। इतना सरल उसका चेहरा हो गया था, जैसे बांस ही हो । उसके डोलने में वही लोच थी, जो बांसों में है। जैसे हवा का तेज झोंका आता और बांस झुक जाते, ऐसे ही वह भी झुक जाता। | कोई रेसिस्टेंस, कोई विरोध, कोई अकड़, जो आदमी की जिंदगी का हिस्सा है, नहीं रह गई थी। बांस जमीन पर गिर जाते, जोर की आंधी आती, तो वह भी जमीन पर गिर जाता। आकाश से बादल बरसते और बांस आनंदित होकर पानी को लेते, तो वह भी आनंदित होकर पानी को लेता।

लोगों ने उसे पकड़ा और कहा, वापस चलो। गुरु ने स्मरण किया है। अब तुम वह बांस के चित्र कब बनाओगे ?

उसने कहा, लेकिन अब चित्र बनाने की जरूरत भी न रही। अब मैं खुद ही बांस हो गया हूं। फिर उसे लाए और गुरु ने उससे कहा कि अब तू आंख बंद करके भी लकीर खींच, तो बांस बन जाएंगे। उसने आंख बंद करके लकीरें खींचीं और बांस बनते चले गए। और गुरु ने कहा कि अब आंख खोल और देख। तूने पहले जो बनाए थे, बड़ी मेहनत थी उनमें, लेकिन झूठे थे वे, क्योंकि तेरा कोई जानना नहीं था। अब तुझसे बांस ऐसे बन गए हैं, जैसे बांस की जड़ से बांस निकलते हैं, ऐसे ही अब तुझसे बांस निकल रहे हैं।

एक ज्ञान है, जहां हम एक होकर ही जान पाते हैं।

यह मैंने आपको उदाहरण के लिए कहा। यह उदाहरण भी बिलकुल सही नहीं है। क्योंकि जिसकी बात कृष्ण कर रहे हैं, उसके लिए कोई उदाहरण काम नहीं देगा। वह अपना उदाहरण खुद ही है। और कोई चीज का उदाहरण काम नहीं करेगा। लेकिन यह खयाल में अगर आपको आ जाए कि एक ऐसा जानना भी है, जहां होना और जानना एक हो जाते हैं, तो ही आप ब्रह्मतत्व को समझने में समर्थ हो पाएंगे।

कृष्ण कहते हैं, फिर वह ज्ञानी, वह मुझे भजने वाला, वह युक्त चित्त हुआ, वह स्थिर बुद्धि हुआ भक्त, वासुदेव हो जाता है। वह भक्त नहीं रहता, भगवान हो जाता है।

और एक क्षण को भी आपको अपने भगवान होने का स्मरण आ जाए, तो आपकी सारी जिंदगी, अनंत जिंदगियां स्वप्नवत हो जाएंगी।

३.

सुना है मैंने, एक फकीर, नाम था उसका फरीद, शेख फरीद | कोई लोग उसके पास आते। समझो, कोई आदमी उससे मिलने | आया। वह आकर बैठा नहीं कि फरीद जाएगा उसके पास, उसका सिर हिला देगा जोर से। कई दफे तो लोग घबड़ा जाते। और वह आदमी कहता कि आप यह क्या कर रहे हैं? तो फरीद हंसने लगता। कभी बैठा रहता पास में, डंडा उठाकर उसके पेट में इशारा कर देता। वह आदमी चौंक जाता। वह कहता, आप यह क्या कर रहे हैं। वह हंसने लगता।

बहुत बार लोगों ने पूछा कि आप यह करते क्या हो? तो फरीद बोला कि एक दफा मैं यात्रा पर गया था। बहुत-से खच्चर साथ थे। बड़ा सामान था। बहुत बड़ा कारवां था। वह जो खच्चरों का मालिक था, बड़ा होशियार था। जब कभी कोई खच्चर अड़ जाता और बढ़ने से इनकार कर देता…।

और खच्चर अड़ जाए, तो बढ़ाना बहुत मुश्किल है। बढ़ता रहे, उसकी कृपा । अड़ जाए, तो फिर बढ़ाना बहुत मुश्किल। क्योंकि न उन्हें बेइज्जती का कोई डर, क्योंकि वे खच्चर हैं। उन्हें कोई अड़चन नहीं है। उन्हें आप गालियां दो, उन्हें कोई मतलब नहीं।

फरीद ने कहा, लेकिन वह बड़ा कुशल मालिक था। कभी कोई खच्चर अड़ जाए, तो एक सेकेंड न लगता था चलाने में। तो मैंने उससे पूछा कि तेरी तरकीब क्या है? तो उसने मुझे बताया कि वह | थोड़ी-सी मिट्टी उठाकर खच्चर के मुंह में डाल देता है। खच्चर उस मिट्टी को थूक देता है और चल पड़ता है। तो फरीद ने पूछा, मैं समझा नहीं कि मिट्टी उसके मुंह में डालने और खच्चर के चलने का संबंध क्या है?

तो उस आदमी ने कहा कि मैं ज्यादा तो नहीं जानता, मैं इतना ही समझता हूं कि मुंह में मिट्टी डालने से उसके भीतर की जो विचारों की धारा है, वह टूट जाती है; वह जो अंडर करंट है! खच्चर सोच रहा है, खड़े रहेंगे! अब मुंह में मिट्टी डाल दी। इतनी बुद्धि तो नहीं है कि इन दोनों को फिर से जोड़ सके। मुंह में मिट्टी डाल दी, तो वे भूल गए जाने-आने की बात। मुंह की मिट्टी साफ करने में लग गए, तब तक उसने हांक दिया; वह चल पड़ा। उसने कहा, जहां तक मैं समझता हूं…। ज्यादा मैं नहीं जानता, क्योंकि खच्चर के भीतर क्या होता है, पता नहीं। अनुमान मेरा यह है कि उसकी विचारधारा खंडित हो जाती है, गड़बड़ हो जाती है। बस, उसी में वह चक्कर में आ जाता है; चल पड़ता है। बाकी यह दवा मेरी कारगर है।

लोग कहते, आपने हमें खच्चर समझा है क्या ? फरीद कहता कि बिलकुल खच्चर समझा है। अभी तुझे मैंने देखा तु भीतर आया, तब मैंने देखा कि तेरे भीतर क्या चल रहा था। कठिन नहीं है देखना कि दूसरे के भीतर क्या चल रहा है। शिष्टतावश अनेक लोग, जो जानते भी है कि दूसरे के भीतर क्या चल रहा है, कहते नहीं हैं। लेकिन दूसरे के भीतर क्या चल रहा है, यह जानना बड़ी ही सरल बात है। जब आप भीतर आते हैं, तो आपके भीतर क्या चल रहा है, उसके साथ आपके चारों तरफ रंग, और आपके चारों तरफ गंध, और आपके चारों तरफ विचार का एक वातावरण भीतर प्रवेश करता है।

तो फरीद कहता, जैसे ही मैं देखता हूं, इसके भीतर कोई वासना चल रही है, उचककर मैं उसकी गर्दन को जोर से हिला देता हूँ। वही खच्चर वाला काम कि शायद करंट…! और अक्सर मेरा अनुभव है कि करंट टूट जाती है। वह चौंककर पूछता है, क्या कर रहे हैं? कम से कम वहां से चौंक जाता है; दूसरी यात्रा पर ले जाया जा सकता है।

बहुत से धर्म की जो विधियां हैं, वे सारी विधियां ऐसी हैं कि किसी तरह आपकी जो वासना की तरफ दौड़ती हुई स्थाई हो गई धारा है, वह तोड़ी जा सके।

आप मंदिर जाते हैं। आपने घंटा लटका हुआ देखा है मंदिर के सामने। कभी खयाल नहीं किया होगा कि घंटा किसके लिए बजाया जाता है। आप सोचते होंगे, भगवान के लिए, तो आप गलती में हैं। वह आपके खच्चर के लिए है। वह जो घंटनाद है, भगवान से उसका कोई लेना-देना नहीं है। वह आपकी खोपड़ी में जो चल रहा है, जोर का घंटा बजेगा, मिट्टी थूककर आप मंदिर के भीतर चले जाएंगे।

वह अंतर धारा जो चल रही है, वह एक झटके में टूट जाए। टूटती है, अगर समझ हो, तो बराबर टूट जाती है।

कहते हैं, मंदिर स्नान करके चले जाओ; ऐसे ही मत चले जाना वह अंतर धारा तोड़ने के लिए जो भी हो सकता है, कोशिश की जाती है। बाहर ही जूते निकाल दो वह अंतर-धारा तोड़ने के लिए आपके जितने एसोसिएशन हैं, वह तोड़ने की कोशिश की जाती है। जाकर मंदिर में लेट जाओ चरणों में परमात्मा के साष्टांग, सब अंग जमीन को छूने लगे; सिर जमीन पर पटक दो। वह जो अकड़ा हुआ सिर है, चौबीस घंटे अकड़ा रहता है। शायद… । वही खच्चर वाला काम किया जा रहा है। आपके भीतर वह जो अंडर करंट है, शायद… ।

लेकिन कई बड़े कुशल खच्चर हैं; उन खच्चरों का मुझे पता नहीं। कितना ही घंटा बजाओ, उनके भीतर कुछ भी नहीं बजता । कुछ बजता ही नहीं !

लेकिन मनुष्य को सहायता पहुंचाने के लिए जिनकी आतुरता रही है, उन्होंने बहुत-सी व्यवस्थाएं की हैं।

४.

सुनी है हम सबने कथा, बहुत प्यारी और मधुर है। नचिकेता अपने पिता के पास बैठा है। पिता ने किया है बड़ा यज्ञ। ब्राह्मणों को दान कर रहे हैं वे। पिता ने नचिकेता से कहा है, में अपना सब दान | कर दूंगा। छोटा बच्चा है, और छोटे बच्चों से कभी-कभी जो सवाल उठते हैं, वे बड़े गहरे और आत्यंतिक होते हैं। वह बैठा हुआ है पास में, जब ब्राह्मणों को दान दिया जा रहा है। और नचिकेता का पिता पुरानी बूढ़ी गाएं दे रहा है, जिनसे दूध मिलने को नहीं। इस तरह की चीजें दे रहा है, जिनकी अब कोई जरूरत नहीं रही तो नचिकेता बार-बार पूछता है कि मैं भी तो आपका हूं न, तो मुझे कब दान देंगे? मुझे किसे दान देंगे? क्योंकि कहा आपने कि मैं अपना सब कुछ दे डालूंगा। मैं भी तुम्हारा बेटा हूं न !

पिता को क्रोध आ जाता है। वह क्रोध में कहता है कि तुझे भी दे दूंगा; घबड़ा मत। लेकिन तुझे मृत्यु को, यम को दे दूंगा।

नचिकेता, मानकर कि यम को दान कर दिया गया, यम के द्वार पर पहुंच जाता है। लेकिन यम घर के बाहर है। तो वह तीन दिन भूखा बैठा रहता है, फिर यम आते हैं। उसका तीन दिन भूखा बैठा रहना, उस छोटे से बच्चे का, और इतनी सरलता से मृत्यु पर स्वयं आ जाना! क्योंकि यम का अनुभव तो यही है कि वह जिसके द्वार पर जाता है, वही घर छोड़कर भागता है। यम के द्वार पर आने वाला यह पहला ही व्यक्ति है, जो खुद खोजबीन करके आया और फिर यह देखकर कि यम घर पर नहीं है, भूखा-प्यासा बैठा है। तो यम कहते हैं कि तू कुछ मांग ले, तू वरदान ले ले। मैं तुझ पर प्रसन्न हुआ हूं। मैं तुझे हाथी-घोड़े, धन-दौलत, सुंदर स्त्रियां, राज्य – सब तुझे दूंगा।

नचिकेता कहता है, लेकिन जो धन आप देंगे, उससे मुझे तृप्ति मिल पाएगी, ऐसी, जो कभी नष्ट न हो? वह यम उदास होकर कहता है, ऐसी तो कोई तृप्ति धन से कभी नहीं मिलती, जो समाप्त  न हो। वे जो स्त्रियां आप मुझे देंगे, उनका सौंदर्य सदा ठहरेगा ? यम कहता है कि कुछ भी इस जगत में सदा ठहरने वाला नहीं है। वह जो आप मुझे लंबी उम्र देंगे, क्या उसके बाद फिर आप मुझे लेने न आएंगे? तो यम कहता है, यह तो असंभव है। कितनी ही हो लंबी उम्र, अंत में तो मैं आऊंगा ही। वह जो बड़ा राज्य आप मुझे देंगे,  क्या उसे पाकर मैं वह पा लूंगा, ऋषियों ने जो कहा है कि जिसे पा लेने से सब पा लिया जाता है? यम कहता है, उससे तो कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि बड़े-बड़े सम्राट वह सब पा चुके हैं और फिर भी दीन-हीन मरे हैं। तो नचिकेता कहता है, ये चीजें फिर मैं न लूंगा। मुझे तो इतना ही बता दें कि मृत्यु का राज क्या है, ताकि मैं अमृत को जान सकूं।

नचिकेता को बहुत समझाता है यम । यम बहुत बुद्धिमान है। मृत्यु से ज्यादा बुद्धिमान शायद ही कोई हो। अनंत उसका अनुभव है जीवन का। हर आदमी की नासमझी का भी मृत्यु को जितना पता है, उतना किसी और को नहीं होगा। क्योंकि जिंदगीभर दौड़-धूप करके हम जो इकट्ठा करते हैं, मृत्यु उसे बिखेर जाती है। और एक बार नहीं, हजार बार हमारा इकट्ठा किया हुआ मौत बिखेर देती है। हम फिर दुबारा मौका पाकर, फिर वही इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं।

आदमी की नासमझी का जितना पता मौत को होगा, उतना किसी और को नहीं है। इतने लोगों की नासमझी से मौत गुजरकर समझदार हो गई हो, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन यह बच्चा बहुत अडिग है। वह कहता है कि मुझे तो वही बता दें, जिससे अमृत को जान लूं। मृत्यु को समझा दें मुझे। और आप तो मृत्यु को जानते ही हैं, आप मृत्यु के देव हैं। आप नहीं बताएंगे, तो मुझे कौन बताएगा!!

बुद्धिमान होगा नचिकेता, कृष्ण के अर्थों में। हम बुद्धिमान नहीं हो सकते; हम अल्पबुद्धि हैं। खयाल रखें, कृष्ण कह रहे हैं, अल्पबुद्धि, बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं।

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