गीता दर्शन -गुरुदेव ओशो

गीता दर्शन -गुरुदेव ओशो

1. संसार क्षणभंगुर है, इसलिए संसार से आया सुख भी क्षणभंगुर है।

जैसे

आ गया सुख; फिर अगले ही पल

आ, गया सुख।

ब्रह्म शाशवत है, इसलिए ब्रह्म से आया सुख भी शाशवत है।

2. एक लहर अपने को बचाने में लग जाए, फिर दिक्कत में पड़ेगी।

क्योंकि लहर सागर से अलग कुछ है भी नही।

उठी है तो भी सागर के कारण; है तो भी सागर के कारण; मिटेगी तो भी सागर के कारण।

नही थी, तब भी सागर में थी; है, तब भी सागर में है; नही हो जाएगी, तब भी सागर में होगी।

3. सत्य के द्वार पर जो भिखारी की तरह खड़ा होगा, वह खाली हाथ वापस लौटेगा।

सत्य के द्वार पर जो सम्राट की तरह खड़ा होता है, उसे ही सत्य मिलता है।

4. इतना बडा विराट अस्तित्व चल रहा है बिना कर्ता के, तो मेरी छोटी सी गृहस्ति बिना कर्ता के नही चल पाएगी? इतने चांद तारे यात्राए कर रहे है बिना कर्ता के! रोज सुबह सूरज उग आता है। हर वर्ष वसंत आ जाता है। अरबो खरबो वर्षो से पृथ्वी घूमती है, निर्मित होती है, मिटती है। अनंत तारो का जाल चलता रहता है। बिना किसी कर्ता के इतना सब चल रहा है। लेकिन मै कहता हूं, मेरी दुकान बिना कर्ता के कैसे चलेगी।

5. जीवन का रहस्य ही यही है कि हम जिसे पाना चाहते है, उसे हम नही पा पाते है। जिसके पीछे हम दौड़ते है, वह हमसे दूर हटता चला जाता है। जीवन को जो लोग जितनी वासनाओ-आकांक्षाओ में बांधना चाहते हैं, जीवन उतना ही हाथ के बाहर हो जाता है। अंत मे सिवाय रिक्तता, फ्रस्ट्रेशन, विषाद के कुछ भी हाथ नही पड़ता है। कृष्णा कहते है, खुली रखो मुट्ठी, आकांक्षा से बंधो मत, इच्छा से बंधो मत। कृष्ण कहते है, जीना अपने मे ही आनंद है। जीने के लिए कल की इच्छा से बांधना नासमझी है। जीना अपने मे ही आनंद है।

6. बुद्ध मरने के करीब है। जीवन का दिया बुझने के करीब है। एक भिक्षु बुद्ध से पूछता है, बहुत पीड़ा हो रही है? थोड़े ही क्षणों बाद आप नही रहेंगे। बुद्ध कहते है जो नही था वही नही हो जाएगा। जो था वही रहेगा। इसलिए तुम व्यर्थ दुखी मत हो जाओ। मृत्यु उसे ही मिटा सकती है, जो नही था, जिसे हमने सोचा भर था कि है। स्वप्न था जो। जो नही था, वही मिट जाएगा। और जो है उसके मिटने का कोई उपाय नही है। जो है वो रहेगा।

मृत्यु तो आ रही है, लेकिन बुद्ध मृत्यु को और तरह से देखते है। स्वयं को दूर खड़ा कर पाते है, तटस्थ हो पाते है। मृत्यु की नदी बह जाएगी, बुद्ध तट पर खडे रह जाएंगे – अछूते बाहर।

7. भगवान विष्णु के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो वह करे, जिसने पृथ्वीके परमाणुओकी गिनती कर ली हो।

8. जब भी मन किसी चीज में कहे, सुख है, तो मन से एक बार और पूछना कि सच? पुराना अनुभव ऐसा कहता है? किसी और व्यक्ति का अनुभव ऐसा कहता है? पृथ्वी पर कभी किसी ने कहा है कि इस बात से सुख मिल सकेगा?

जीवन दुख है। सब सुख दुखो का निमंत्रण है और वह कौन है जो इन्हें जानता है!

9. समय काटने का अर्थ है, जीवन को काट रहे हैं, और एक गया हुआ क्षण वापस नही लौटता। बड़ा मजेदार है आदमी, एक तरफ कहता है कि उम्र कैसे बढ जाए। उम्र बढ़ जाए तो पूछता है समय कैसे कटे। तो आप कोई जिंदगी काटने के लिए आए हैं, कि किस तरह काट दे। तो एकदम से ही काट डालिये। छलांग लगा जाइये किसी पहाड़ से, समय एकदम कट जाएगा। तो ये ग्रेजुअल सुसाइड, ये धीरे धीरे आत्महत्या को आप कहते है जीवन?

10. सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।

ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।6.29।।

अर्थ:

 योगयुक्त अन्तकरण वाला और सर्वत्र समदर्शी योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है।।

बात करीब करीब ऐसी है, जैसे कोई आदमी अपने घर के बाहर कभी न गया हो और जब भी आकाश को देखा हो, तो अपनी खिड़की से देखा हो। आकाश तो असीम है, लेकिन खिड़की से देखा गया आकाश फ्रेम में हो जाता है। फिर अगर घर में बहुत सारी खिड़किया है, तो आप बहुत से आकाशों को जाननेवाले हो जाएंगे। एक खिड़की से देखेंगे, एक आकाश दिखाई पड़ेगा जहा से सूरज निकलता है। दूसरी खिड़की से देखेंगे, वहाँ अभी कोई सूरज नही है, आकाश में बदलिया तैर रही है। तीसरी खिड़की से देखेंगे तो आकाश में पक्षी उड़ रहे है।

यहॉ खुला आसमान ईश्वर है, भिन्न भिन्न खिड़की पर खडा इंसान भिन्न भिन्न धर्मो का प्रतीक है।

11. बुद्ध ने धम्मपद में कहां है कि तुम जो हो, वह तुम्हारे विचारों का फल हो। अगर दुखी हो, तो अपने विचारों में तलाशना, तुम्हें वे बीज मिल जाएंगे, जिन्होंने दुख के फल लाएं। अगर पीड़ित हो तो खोजना; तुम्ही अपने हाथों को पाओगे, जिनोहोने पीड़ा के बीच बोए। अगर अंधकार ही अंधकार है तुम्हारे जीवन में, तो तलाश करना; तुम पाओगे कि तुम्ही ने इस अंधकार का बड़ी मेहनत से निर्माण किया। हम अपने नरको का निर्माण बड़ी मेहनत से करते हैं। दोनों ही बातें सच सोच लेना।

12. जो लोग भी स्वयं को जान लेते हैं, उनके लिए मृत्यु अपने ही हाथ का खेल है। और मृत्यु मे ऐसे ही प्रवेश करते हैं जैसे आप किसी पुराने मकान को छोड़कर नए मकान में प्रवेश करते हैं। आप नहीं करते ऐसा। आपको तो एक मृत्यु से दूसरे मृत्यु में घसीट कर ले जाना पड़ता है, बड़ी मुश्किल से। क्योंकि आप पुराने मकान को ऐसा जोर से पकड़ते हैं कि छोड़ते ही नहीं। हालांकि वह मकान बेकार हो चुका है, सड़ चुका है, अब उसमें जीवन संभव नहीं है। मृत्यु आती ही तभी है, जब जीवन एक मकान में असंभव हो जाता है।

13. श्रद्धावान व्यक्ति वह है, जिसके द्वार दरवाजे खुले हैं। सूरज को भीतर आने की आज्ञा है। हवाओं को भीतर प्रवेश की सुविधा है। ताजगी को निमंत्रण है कि आओ। श्रद्धा का और कोई अर्थ नहीं होता। श्रद्धा का अर्थ है, मुझसे भी विराट शक्ति मेरे चारों तरफ मौजूद है, मैं उसके सहारे के लिए निरंतर निवेदन कर रहा हूं। बस और कुछ अर्थ नहीं होता।

गुरुदेव ओशो

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