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ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कुंडली में कई शुभ योग बनते हैं । जिनमें से कुछ अत्यंत शुभ माने जाते हैं। कुंडली के शुभ योगों में से एक गजकेसरी योग है। कहा जाता है इस योग के प्रभाव के आर्थिक उन्नति की प्रबल संभवना बनती है। साथ ही इस योग के प्रभाव से नौकरी में पदोन्नति (Promotion) का भी योग बनता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस योग के प्रभाव से जातक को राजा जैसा सुख मिलता है। आइए जानते हैं गजकेसरी योग के बारे में।
गजकेसरी योग एक बहुत ही शुभ योग माना जाता है और यह कुंडली में बनने वाले सभी धन योगों में सबसे प्रबल होता है। यह योग धन के कारक गुरु और मन के कारक चंद्रमा से बनता है। कुंडली में गुरु और चंद्र दोनों ही बेहद शुभ ग्रह होते है और जब गुरु और चंद्र पूर्ण बलवान हो तो यह योग बनता है। कुण्डली में गजकेसरी योग होने पर गज के समान शक्ति व धन दौलत प्राप्त होती है। गजकेसरी योग हाथी और सिंह के संयोग से बनता है। गज में अभिमान रहित अपार शक्ति और सिंह में अदम्य साहस होता है। इसी प्रकार जिसकी कुण्डली में गजकेसरी योग बलवती होता है,वह अपनी सूझबूझ और अदम्य साहस के बल पर सभी कार्य सिद्ध करता है।
गजकेसरी योग का बारें कहा जाता है कि गज यानि हाथी और केसरी का अर्थ स्वर्ण होता है। यानि यह योग शक्ति और धन से जुड़ा हुआ योग है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की कंडली में गजकेसरी योग का निर्मण होता है तो इंसान के पास हाथी जैसा बल और लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है। इसलिए लोग गजकेसरी योग की अवधि में खूब आर्थिक तरक्की करते हैं। कहा जाता है कि ऐसे लोग जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते है।
कुंडली में गजकेसरी योग गुरु और चंद्र से बनता है अगर केंद्र स्थान यानी लग्न,चौथे और दसवें भाव में गुरु-चंद्र साथ हो और बलवान हो तो यह योग बनता है वहीं अगर चंद्रमा गुरु से केंद्र में हो या फिर चंद्र पर गुरु की कोई एक दृष्टि जा रही हो तो यह योग बनेगा। इस योग में भी सबसे बलवान राजयोग वो होगा जिसमें गुरु अपनी उच्च राशि में चंद्र के साथ हो या चंद्र उच्च राशि में गुरु के साथ हो। उदाहरण के लिए मेष लग्न की कुंडली में अगर चौथे भाव में उच्च का गुरु चन्द्रमा के साथ हो तो यह सबसे बलवान गजकेसरी योग होगा। लेकिन अगर यही योग वृष लग्न की कुंडली में बनेगा तो यह बलवान नहीं होगा क्योंकि गुरु की मूल त्रिकोण राशि गुरु अष्टम भाव में आ जाती है । वही मेष लग्न में धनु राशि भाग्य स्थान वही कर्क राशि केंद्र स्थान की स्वामी होती है। गजकेसरी योग जब चतुर्थ व दशम भाव में बनता है तो व्यक्ति अपने व्यवसाय व करियर में अथाह तरक्की करता है इसके अलावा उसे भूमि,भवन और वाहन का अतुलनीय सुख प्राप्त होता है।
गजकेसरी योग भंग कब होगा ?
वृहत्पाराशर की प्रति में लिखा गया है कि लग्नाद् वेन्दोर्गुरौ केन्द्रे सौम्यैर्युक्तेऽथवेक्षिते। गजकेसरियोगोऽयं न नीचास्तरिपुस्थिते।
इस श्लोक में योग की अनिवार्यता बताई गयी है अर्थात् लग्न या चन्द्र से केन्द्र में गुरु,नीच,अस्त या शत्रु ग्रह से रहित शुभयुक्त या दृष्टि हो तो गजकेसरी योग होता है। इसका अर्थ यह है कि अगर यह युति नीच ग्रह के साथ हो,गुरु अस्त हो,चन्द्रमा के आगे पीछे कोई ग्रह नहीं हो और किसी पाप ग्रह की दृष्टि ना हो तो ही यह योग बनेगा। और गुरु और चन्द्रमा में से कोई एक भी ग्रह अकारक हो जाए तो भी इस योग के उतने शुभ परिणाम हासिल नहीं होते हैं जितने की बताए गए है। इसको फिर एक उदाहरण से समझते हैं। तुला लग्न की कुंडली में अगर गुरु एवं चन्द्रमा दोनों ही लग्नस्थ हों तो यह योग होगा, चूंकि गुरु की मूल त्रिकोण राशि तीसरे भाव में है तो चंद्रमा की राशि दशम में होने के बाद भी यह योग नहीं होगा क्योंकि एक ग्रह अकारक हुआ। अब इस योग का साधारण फल प्राप्त होगा।
ज्योतिष शास्त्र की मानें तो गजकेसरी योग का लाभ प्राप्त करने के लिए चंद्रमा और बृहस्पति का मजबूत होना जरूरी है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मजबूत बनाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने की सलाह दी जाती है। साथ ही पूर्णिमा पर चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है। इसके अलावा गुरुवार को बृहस्पतिदेव की पूजा की जाती है।
Tags: Gaj Kesari Yog
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