लघु कथा – गुरुदेव ओशो

लघु कथा – गुरुदेव ओशो

१.

तप का अर्थ है, वह व्यक्ति पहली दफे भीतर आत्मवान बनता है। जब तक दुख आपको हिला देता है, आप दुख से कमजोर हैं। सुख हिला देता है, सुख से कमजोर हैं। कोई एक फूल की माला गले में डाल देता है और आप कंप जाते हैं, तो आप फूल की माला से कम कीमती हैं। आपकी कीमत बहुत ज्यादा नहीं है।

मैंने सुना है कि एक करोड़पति एक तालाब में गिर गया था। अनेक लोग खड़े होकर देख रहे थे। एक अजनबी आदमी भी भीड़ में था, वह चिल्लाया कि तुम खड़े होकर क्यों देख रहे हो? आदमी मर रहा है! उसे कुछ पता नहीं था कि वह आदमी कौन है। वह बेचारा कूद पड़ा। उस करोड़पति को, बड़ी मुश्किल से, अपनी जान को जोखिम में डालकर, बचाकर बाहर लाया। जब वह होश में आया धनपति, तो उसने कहा, बहुत-बहुत धन्यवाद । खीसे में उसने हाथ डालकर कुछ खोजा, फिर एक नया पैसा निकालकर उस आदमी को भेंट किया।

सारी भीड़ चिल्लाने लगी कि इसीलिए तो हममें से कोई कूदकर नहीं बचा रहा था। आदमी देखते हैं! एक नया पैसा! उस आदमी ने जिंदगी, जान लगा दी; जोखम में डाला अपने को; और यह एक पैसा उसको इनाम दे रहा है!

एक और आदमी, एक फकीर इस बीच उस भीड़ के पास आकर खड़ा हो गया था। उसने कहा, नाराज मत होओ। नो वन नोज दि वेल्यू ऑफ हिज लाइफ मोर दैन हिमसेल्फ, उसकी जिंदगी की कीमत उसके सिवाय और किसको ज्यादा मालूम हो सकती है ! वह बिलकुल ठीक दे रहा है। एक नया पैसा! वह अपनी जिंदगी की कीमत ही चुका रहा है। और किसी की जिंदगी का कोई सवाल नहीं है। अगर मर जाता, तो एक नये पैसे का नुकसान हो रहा था दुनिया में। और तो कोई खास नुकसान नहीं था।

उस फकीर ने कहा, नाराज मत होओ। उसके सिवाय कोई भी नहीं जानता कि उसकी जिंदगी की असली कीमत कितनी है। वह ठीक आंक रहा है।

२.

एक छोटी-सी घटना मुझे याद आती है। सुना है मैंने कि कनफ्यूसियस के जमाने में चीन में दो चीनियों ने आमने-सामने दुकान खोली, होटल। एक का नाम था यिन और दूसरे का नाम था यांग; उन दोनों ने दुकानें खोलीं। दोनों की दुकानें अच्छी चलने लगीं,बहुत जोर से चलने लगीं। धन इकट्ठा होने लगा, तिजोड़ी भरने लगी। लेकिन दोनों का दुख भी बड़ा होने लगा, जैसा कि अक्सर होता है। सफलता के साथ न मालूम कैसी गहरी उदासी आने लगती है। क्योंकि आप अकेले ही सफल नहीं होते, दूसरा भी सफल हो रहा होता है।

दोनों परेशान हो गए। दोनों की दुकान अच्छी चलती है।। भीड़-भड़क्का होता है। ग्राहक काफी आते हैं। लेकिन दोनों परेशान | हो गए। दोनों का हृदय चाप बढ़ गया। दोनों की नींद हराम हो गई। अनिद्रा पकड़ गई। दोनों चिकित्सकों का चक्कर लगाने लगे, लेकिन कोई रास्ता न सूझे। धन बढ़ता गया और बेचैनी बढ़ती चली गई। बेचैनी यह थी कि दोनों अपने-अपने काउंटर पर बैठकर देखते थे कि दूसरे की दुकान में कितने ग्राहक जा रहे हैं, उनकी गिनती करते थे। रात परेशान होते थे कि इतने ग्राहक चूक गए अपने पास भी आ सकते थे।

चिकित्सकों ने कहा कि हम तुम्हारा इलाज न कर पाएंगे, क्योंकि यह बीमारी शारीरिक नहीं है। तुम कनफ्यूसियस के पास चले जाओ। उन्होंने कहा, कनफ्यूसियस इसमें क्या करेगा? वह उपदेश देगा । उपदेश से कुछ होने वाला नहीं है। सवाल असल यह है कि दूसरे की दुकान पर ग्राहक बहुत जा रहे हैं, और उन्हें हम देखते हैं। आंख बंद कर नहीं सकते हैं। सामने ही दुकान है। छाती पर चोट लगती है। हर बार एक आदमी भीतर प्रवेश करता है, फिर छाती पर चोट लगती है। नींद न जाएगी, तो होगा क्या!

फिर भी, चिकित्सकों ने कहा, तुम कनफ्यूसियस के पास जाओ। वह होशियार है, और वह आदमी की गहरी बीमारियों को जानता है।

वे दोनों गए। कनफ्यूसियस ने तरकीब बताई और वह काम कर गई और दोनों स्वस्थ हो गए। बड़ी मजेदार तरकीब थी। शायद ही इस जमीन पर किसी और होशियार आदमी ने ऐसी तरकीब कभी बताई हो ।

कनफ्युसियस ने कहा, पागलो। बड़ा सरल-सा इलाज है। दुकानें चलने दो, तुम एक-दूसरे के काउंटर पर बैठने लगो । यिन यांग के काउंटर पर बैठे, यांग यिन के काउंटर पर बैठे, तब तुम दोनों का। चित्त बड़ा प्रसन्न होगा। दूसरे की दुकान में जो घुस रहे हैं, वे अपनी ही दुकान में जा रहे हैं! तुम ऐसा कर लो।

और कहते हैं, उन दोनों ने ऐसा कर लिया और उस दिन से उनकी | सब बीमारियां समाप्त हो गईं। वे दिनभर बैठे मजा लेते रहते कि ठीक! काफी लोग जा रहे हैं अपनी दुकान में! वह दूसरे की दुकान अपनी हो गई अब ।

जिस दिन कोई परमात्मा को झांक लेता है, उस दिन सब दुकानें अपनी हो जाती हैं, सब कुछ अपना हो जाता है। उस दिन भीतर की प्रफुल्लता का कोई अंत नहीं है। उस दिन फूल खिलते हैं भीतर के । सहस्र पंखुड़ियों वाला फूल उस दिन खिलता है भीतर का, क्योंकि उस दिन हम परम आनंद में विराजमान हो जाते हैं। सब अपने हैं। सब अपना है । सारा विराट अपना है।

३.

सुना है मैंने, एक संन्यासी को उसके गुरु ने कहा कि तू अब यहां न सीख पाएगा। हम जो सिखा सकते थे, सिखाया; लेकिन उसके लिए तू बहरा है। तू यहां से जा और देश की राजधानी में सम्राट के पास पहुंच जा। अगर कुछ सीख सकता है, तो अब वहीं ।

वह संन्यासी यात्रा करके सम्राट के द्वार पर पहुंचा। बड़ी मुश्किल में पड़ा । सम्राट को देखा। रात हो गई थी। दरबार भरा था। नर्तकियां नाचती थीं। अर्धनग्न स्त्रियां नाचती थीं। शराब ढाली जा रही थी। सम्राट बीच में बैठा था। उस संन्यासी ने कहा, यहां मुझे सीखने भेजा है! अपने मन में सोचा, अच्छा फंसा ! अब कहां भागकर जाऊं ? अब इस रात कहां ठहरूंगा ?

सम्राट ने कहा, इतने चिंतित मत होओ। इतने बेचैन मत होओ। ठीक जगह ही भेजे गए हो। आओ, विश्राम करो रात। जल्दी क्या है लौट जाने की? दो दिन बाद लौट जाना। वह बहुत घबड़ाया। उसने कहा, मैंने तो आपसे कुछ कहा नहीं! सम्राट ने कहा कि कहने से ही कुछ सुनाई पड़ता हो, ऐसा कहां! तेरे गुरु ने कितना तुझसे कहा, तूने कुछ न सुना। जब कहने से सुनाई न पड़े, तो न कहने से भी सुनाई पड़ सकता है। तू बैठ। तू जल्दी मत कर।

रात भोजन करवाया। भोजन के बाद फिर उस संन्यासी ने कहा, एक बात तो कम से कम बता दें ! सम्राट ने कहा, जल्दी क्या है? कल सुबह पूछ लेना। उसने कहा कि नहीं; रातभर नींद न आएगी। यह क्या मजा है! मेरे गुरु ने आपके पास भेज दिया; शराबी के पास। नाच-गान चल रहा है। यह सब क्या उपद्रव है! मैं संन्यासी, मैं ब्रह्मचारी। मुझे यहाँ कहाँ भेज दिया। आपके पास किसलिए भेजा है और आप मुझे क्या खाक सिखाएंगे? अभी खुद सीखे नहीं

उस सम्राट ने कहा कि मैं तो भजन करता रहता है। उसने कहा, क्या खाक भजन होता होगा। यह भजन हो रहा है? शराब चल रही है. प्याले सरक रहे हैं; स्त्रियां नाच रही है यह भजन हो रहा है? तुम मुझे अभी चले जाने दो। ऐसा भजन मुझे नहीं सीखना। सम्राट ने कहा कि यह तो भजन नहीं है। लेकिन भजन जारी है। खैर, कल सुबह हम बात कर लेंगे।

बहुत सुंदर बिस्तर पर उसे सुलाया, जैसे पर वह कभी न सोया हो बहुत सुखद इंतजाम किया व सुविधा की जो सम्राट के पास श्रेष्ठतम था।

सुबह जब उठा संन्यासी, सम्राट ने पूछा, प्रसन्न तो हैं। कोई अड़चन, कोई तकलीफ तो न थी? उस संन्यासी ने कहा, तकलीफ तो कोई न थी, आराम तो पूरा था। लेकिन नींद नहीं लगी। नींद क्यों | नहीं लगी? कहा कि आप भी अजीब आदमी है। अच्छा बिस्तर दिया। सब दिया। यह ऊपर एक नंगी तलवार एक धागे से काहे के लिए बांधकर लटका दी? तो रातभर प्राण संकट में रहे। आंख बंद करूं, तो तलवार दिखाई पड़े। पता नहीं धागा कब टूट जाए! और पतला धागा, करवट लू तो प्राण संकट में, कि पता नहीं वह तलवार कब टूट जाए। रातभर एक पल सो नहीं सका।

सम्राट ने कहा, मैं तुझे कहता हूं कि इसे ऐसा कह कि रातभर तूने तलवार का भजन किया। बिस्तर लुभा न सके। चारों तरफ इत्र की खुशबुएं थीं, वे सुला न सकीं। कुछ सुला न सका तलवार का भजन जारी रहा। तुझसे मैं कहता हूं, स्त्रियां नाचती थीं, माना कि वे अर्धनग्न थी; शराब ढलकाई जाती थी, माना कि लोग शराब पी रहे थे, लेकिन तुझे मैं कहता हूं, ठीक तलवार की तरह मौत मेरे ऊपर लटकी है। तेरे ऊपर ही कल रात लटकी थी, ऐसा नहीं; सबके ऊपर लटकी है; कच्चे धागे में ही लटकी है। तुझे दिखाई पड़ रही थी, क्योंकि मैंने प्रत्यक्ष लटका दी थी। मौत की तलवार दिखाई नहीं पड़ती; सबके ऊपर लटकी है।

पर, उसने कहा, इससे भगवान के भजन का क्या मतलब? जिस तरह मैं तलवार का भजन करता रहा रातभर, अगर आपको मौत इस तरह लटकी हुई दिखाई पड़ती है, तो आप मौत का भजन कर रहे होंगे ?

उस सम्राट ने कहा, नहीं जिस दिन मौत प्रतिपल दिखाई पड़ने लगे, जिस दिन मौत चारों तरफ दिखाई पड़ने लगे, जिस दिन शरीर का सब कुछ मरेगा, यह दिखाई पड़ने लगे; जिस दिन पदार्थ के जगत में सब विनष्ट होगा, यह दिखाई पड़ने लगे-उस दिन उसका स्मरण शुरू हो जाता है, जो विनष्ट नहीं होता, जो अमृत है। मौत तो तलवार की तरह लटकी है, लेकिन मेरे हृदय में अब मौत का स्मरण नहीं है, क्योंकि मौत तो है। अब मेरे मन में उसका स्मरण है, जो मौत के भी पार है, और जो मौत से भी नष्ट नहीं होता; जो मौत के बीच से भी गुजर जाता है, अस्पर्शित।

प्रभु स्मरण का अर्थ है, अमृतत्व का स्मरण, चैतन्य का स्मरण, परम सत्ता का स्मरण । और वह स्मरण ऐसा नहीं है कि आप पांच क्षण को घर में बैठकर दोहरा लें और हो गया। वह स्मरण ऐसा है कि आपके रोएं-रोएं में, श्वास- श्वास में, हृदय की धड़कन धड़कन में प्रवेश कर जाए। उठें, तो उस भजन में; सोएं, तो उस भजन में; चलें, तो उस भजन में – तो बुद्धिमत्ता है।

कृष्ण कहते हैं, दो तरह के लोग हैं इस जगत में। मूढजन हैं, जो मेरी तरफ आंख नहीं उठाते, जब कि मैं उन्हें निहाल कर दूं। बुद्धिमान हैं, जो मेरे अतिरिक्त और कहीं नजर नहीं ले जाते। क्योंकि मेरी तरफ नजर उठी कि फिर और कोई जगह देखने योग्य नहीं रह जाती। मेरी तरफ नजर उठी कि फिर और कुछ पाने योग्य नहीं रह जाता। मुझे जिन्होंने पा लिया, उन्होंने सब पा लिया है।

४.

सुना है मैंने कि एक आदमी ने नई-नई किसी के साथ साझेदारी की। कोई पूछता था कि फिर कोई साझेदार मिल गया तुम्हें? क्योंकि वह आदमी कई साझेदारों को धोखा दे चुका है। फिर कोई साझेदार मिल गया तुम्हें? उसने कहा, फिर कोई साझेदार मिल गया। जमीन पर नासमझों की कोई कमी नहीं है। लेकिन कोई भी साझेदार मेरे साथ रहकर नुकसान में कभी नहीं पड़ता। उस आदमी ने कहा, यह तुम क्या कह रहे हो। हमने तो अब तक यही सुना कि जो भी तुम्हारे साथ रहता है, नुकसान में पड़ता है।

उसने कहा, तुम समझो, फिर तुम कभी ऐसा न कहोगे। अब यह जो नया साझीदार है, पूरी पूंजी लगा रहा है। पूरी पूंजी वह लगा रहा है, पूरा अनुभव मैं लगा रहा हूं। फिफ्टी-फिफ्टी समझो। आधा मेरा है, आधा उसका अनुभव मेरा, धन उसका। और तुमसे मैं कहता हूं कि पांच साल में अनुभव उसके पास होगा और धन मेरे पास। लेकिन तुम समझते हो कि मैं ही फायदे में रहूंगा, वह फायदे में नहीं रहेगा? अनुभव !

लेकिन हम जिंदगी में कई बार जीवन का धन गंवा चुके और अब तक उस अनुभव को उपलब्ध नहीं हुए, ‘वह साझीदार कह रहा था कि पांच साल में मेरा मित्र हो जाएगा। हमने न मालूम जीवन के धन को कितनी बार गंवाया है। हम किसी अनुभव को उपलब्ध नहीं हुए। हम फिर वही करते हैं। हम फिर वही करते हैं। हम फिर वही करते चले जाते हैं। जैसे अनुभव जैसी कोई चीज हमारे जीवन में पैदा ही नहीं होती। कल भी वही किया, परसों भी वही किया। पिछले वर्ष भी वही किया था। आने वाले वर्षों में भी आगे वही करेंगे। क्या मतलब है इसका? कहीं कोई चीज है, जैसे कि हम विक्षिप्त की तरह सम्मोहित हैं संसार के साथ। बिलकुल बंधे है पागल की तरह; आब्सेस्ड हैं। नजर नहीं हटती, जैसे किसी ने नजर बांध दी हो; वशीकरण हो गया हो।

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