रुद्राक्ष -शिव का आशीर्वाद

रुद्राक्ष -शिव का आशीर्वाद

शास्त्रों में बताया गया है कि एक मुखी से 14 मुखी रुद्राक्ष तक की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु से हुई थी। साथ इनमें कई प्रकार के चमत्कारी गुण मौजूद होते हैं जिनसे व्यक्ति को जीवन में बहुत लाभ मिलता है। बता दें कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को पाप, भय व दरिद्रता से छुटकारा मिल जाता है और उसे सदैव भाग्य का साथ मिलता है। वहीं रुद्राक्ष को रोगनाशक भी कहा जाता है। मान्यता है कि इन्हें धारण करने से कई प्रकार के रोग और नकारात्मकताओं से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन ज्योतिष विद्वान यह सलाह देते हैं कि इन्हें धारण करने से पहले ज्योतिष सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

1. एकमुखी रुद्राक्ष : इन्हें साक्षात शिव माना गया है। पापों का नाश, भय तथा चिंता से मुक्ति, लक्ष्मी प्राप्ति धारणकर्ता को स्वमेव ही प्राप्त होता है। इसके ग्रह सूर्य हैं। धारणकर्ता को शिवजी के साथ सूर्य देवता का भी आशीर्वाद मिलता है।

 2. दोमुखी रुद्राक्ष :  यह हर गौरी यानी अर्द्धनारीश्वर का रूप है। इसका ग्रह चन्द्रमा है। इसे धारण करने से जन्म-जन्मांतर के पाप कट जाते हैं। इसे धारण करने से एकाग्रता व शांति प्राप्त होती है। वशीकरण की शक्ति प्राप्त होती है। स्त्री रोग, आंख की खराबी, किडनी की बीमारी दूर करता है।

3. तीनमुखी रुद्राक्ष : यह ब्रह्म स्वरूप है तथा इसके देवता मंगल हैं। इसे धारण करने से वास्तुदोष, आत्मविश्वास में वृद्धि, ज्ञान प्राप्ति में लाभ होता है। संक्रामक रोग, स्त्री रोगों आदि में लाभ देता है।

4. चारमुखी रुद्राक्ष : इसके देव ब्रह्मा तथा ग्रह बुध देवता हैं। इसके धारण करने से सम्मोहन की शक्ति आती है। नाक, कान व गले के रोग, कोढ़, लकवा, दमा आदि रोग में लाभ देता है।

5. पंचमुखी रुद्राक्ष : इसके देवता रुद्र तथा ग्रह बृहस्पति हैं। इसे धारण करने से कीर्ति, वैभव तथा संप‍न्नता में वृद्धि होती है। किडनी के रोग, डायबिटीज, मोटापा, पीलिया आदि में लाभ देता है।

6. छहमुखी रुद्राक्ष : इसके अधिष्ठाता देवता गणेश एवं कार्तिकेय हैं। ग्रह देवता शुक्र हैं। कोढ़, नपुंसकता, पथरी, किडनी तथा मूत्र रोग आदि के लिए धारण कर सकते हैं।

7. सातमुखी रुद्राक्ष : इसमें सप्त नाग निवास करते हैं। सप्त ऋषि तथा अनंग देवता अधिष्ठाता हैं। इसके ग्रह शनि महाराज हैं। शारीरिक दुर्बलता, उदर रोग, लकवा, चिंता, हड्डी रोग, कैंसर, अस्थमा, कमजोरी आदि के लिए धारण करते हैं।

8. आठमुखी रुद्राक्ष : इसमें कार्तिकेय गणेश, अष्टमातृका, अष्ट बसु हैं। इसके ग्रह राहु हैं। अशांति, सर्पभय, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि में धारण किया जाता है।

9. नौमुखी रुद्राक्ष : नौ दुर्गा तथा भैरव इसके देवता हैं तथा ग्रह केतु है। फेफड़े, ज्वर, नेत्र रोग, कर्ण रोग, संतान के लिए, उदर कष्ट, संक्रामक रोगों में शांति के लिए धारण किया जाता है।

10. दसमुखी रुद्राक्ष : भगवान विष्णु, 10 दिक्पाल तथा दश महाविद्याएं देवता हैं। सभी ग्रह देवता हैं। इसके धारण करने से नवग्रह शांति तथा कफ संबंधी, फेफड़े संबंधी हृदय रोग आदि में लाभ होता है।

11. ग्यारहमुखी रुद्राक्ष : सभी 11 रुद्र इसके देवता हैं। सभी ग्रह प्रसन्न होते हैं यदि इसे धारण किया जाए। स्त्री रोग, जोड़ तथा स्नायु रोग, वीर्य संबंधी रोग में लाभ देता है।

12. बारहमुखी रुद्राक्ष : इसके देवता तथा ग्रह सूर्य हैं। इसे धारण करने से तेजस्वी तथा ऐश्वर्य वृद्धि होती है। सिरदर्द, गंज, बुखार, नेत्र रोग, हृदय रोग, मूत्राशय आदि में लाभ देता है।

13. तेरहमुखी रुद्राक्ष : इसके देवता कामदेव हैं तथा सभी ग्रह हैं। आकर्षण-वशीकरण, सुन्दरता, समृद्धि आदि में लाभ होता है। मूत्राशय, नपुंसकता, गर्भ संबंधी रोग, किडनी, लिवर संबंधी समस्याएं दूर करता है।

14. चौदहमुखी रुद्राक्ष : इसके देवता श्रीकंठ तथा हनुमानजी हैं। तंत्र-मंत्र, टोने-टोटके, भूत-प्रेत, पिशाच-डाकिनी आदि से रक्षा करता है। निराशा, बेचैनी, भय, लकवा, कैंसर, भूत-प्रेत बाधा आदि में आश्चर्यजनक लाभ देता है।

उपरोक्त वर्णन रुद्राक्ष का परिचय है। इसके धारण या एकाधिक रुद्राक्ष धारण कर लाभ लिया जा सकता है।

  •  ग्रहण योग ग्रहण योग की शांति के लिए 2 एवं 8 मुखी रुद्राक्ष का लॉकेट धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • केमद्रुम योग केमद्रुम योग की शांति के लिए 13 मुखी रुद्राक्ष चांदी में धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • शकट योग शकट योग की शांति के लिए 10 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • कालसर्प दोष कालसर्प दोष की शांति के लिए 8 व 9 मुखी रुद्राक्ष का लॉकेट धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • अंगारक योग अंगारक योग की शांति के लिए 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • चांडाल दोष- चांडाल दोष की शांति के लिए 5 व 10 मुखी रुद्राक्ष का लॉकेट धारण करना लाभप्रद रहता है।
  • मांगलिक योग- मांगलिक योग की शांति के लिए 11 मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभप्रद रहता है।

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