उन्माद (पागलपन) योग

उन्माद (पागलपन) योग

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ ऐसे योग होते हैं जो व्यक्ति के पागल होने की संभावना बताते हैं। पागलपन की बीमारी किसी को बचपन से ही रहती है तो किसी को बड़ी उम्र में इस परेशानी का सामना करना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पागल होने के योग बन रहे हैं तो ऐसे लोगों को सावधान रहने की जरुरत होती है। ऐसे योगों के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताए गए उपाय अपनाने चाहिए। वैसे तो कुंडली में सभी नौ ग्रह अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार किसी ना किसी रोग की सूचना देते हैं, लेकिन कुंडली में दो या दो से अधिक ग्रहों कि युति अपना अलग प्रभाव प्रकट करती है। यह युति रोगों को और जटिल बना देती है। हम आपको कुंडली में ग्रहों के कुछ ऐसे योग बताएंगे जो पागलपन की बीमारी के योग बताते हैं।

  • लग्न में सूर्य हो, सप्तम भाव में मंगल हो तो जातक उन्माद (पागल) प्रकृति का होता है।
  • लग्न भाव में शनि हो, सप्तम, नवम या पंचम भाव में मंगल हो तो जातक उन्मादी प्रकृति का होता है।
  • लग्न या त्रिकोण में सूर्य और चंद्रमा हो, गुरू तीसरे भाव में या केंद्र में हो और धनु राशि का लग्न हो तो जातक निश्चय ही पागल होता है।
  • बुध और चंद्रमा केंद्र में हो तथा चंद्रमा नीच राशि में स्थित हो तो जातक उन्मादी प्रकृति का होता है।
  • जिस जातक की कुंडली में उन्माद योग होता है, वह विक्षिप्त प्रकृति का एवं उन्मादी स्वभाव का होता है।

परिभाषा

जब बुद्धि तथा मन के कारक सभी अंगो पर पापी ग्रहो का प्रभाव पाया जाए तो उन्माद योग का निर्माण होता है।

बुद्धि के द्योतक अंग है:

१. लग्न

२. लग्नाधिपति

३. बुध

४. पंचम भाव

५. पंचमेश

मन के द्योतक अंग है:

१. चतुर्थ भाव

२. चतुर्थ भाव का स्वामी

३. चंद्र

इस प्रकार बुद्धि तथा मन के आठ प्रतिनिधि हुए। जब भी इन आठों की आठों अंगो पर पापी ग्रहों का प्रभाव पाया जाए तो मनुष्य उन्मादी (पागल) हो जाता है।

उदाहरण

यह कुंडली एक सज्जन की है जो अपनी पत्नी के व्यभिचार के कारण पागल हो गया। इस कुंडली में बुध पहले तथा चौथे भाव का मालिक होने की वजह से बुद्धि तथा मन दोनों का द्योतक है।

यह बुध शनि तथा सूर्य, दो क्रूर ग्रहों के मध्य में पाप करतरी योग में फंसा हुआ है। बुध मंगल की युति में जो की छटे घर का मालिक है फिर से पीड़ीत हो रहा है। पंचमेश शुक्र अपने शत्रु बृहस्पति के साथ पीड़ीत ह। लग्न पर सूर्य तथा मंगल दोनो ही क्रूर ग्रहों का दृष्टी संबंध होने से पीड़ित अवस्था में है। चंद्र अकेला ग्यारवे भाव में शनि से दृष्ट हो कर केमद्रुम योग का निर्माण कर रहा है। इस प्रकार सारे अंगो पर पाप प्रभाव होने से उन्माद सिद्ध हो रहा है।

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