सनातन धर्म में एक कथा बड़ी प्रचलित है भगवान नृसिंह और हिरण्याक्षकुश की उसी कथा में भगवान शिव के रूद्र रूप शरभ अवतार की कथा मिलती है।
हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार शर्भेश्वर भगवान शिव के अवतार है। इनके शरीर का आधा भाग सिंह, आधा भाग मनुष्य का तथा आधा भाग शरभ नामक पक्षी का था। वे सिंह और हाथी से भी अधिक शक्तिशाली माने जाते है। शिवपुराण और अन्य पुराणों में इनकी कथा का वर्णन आता है। तत्पश्चात् के साहित्य में शरभ एक ८ पैर वाले हिरण के रूप में वर्णित है।
पुराणों के अनुसार, भगवान् शिव के शरभ अवतार के पास गरुड़ के दो पंख, तीखी चोंच, वीरभद्र की सहस्र भुजाएं, सिंह के पंजे, आठ पैर, शीश पर जटा और चंद्रमा है। उनका यह अवतार ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली प्राणी माना जाता है जो एक छलांग में ब्रह्मांड के इस पार से उस पार तक जाने की क्षमता रखते हैं।
शरभ अवतार के एक पंख में वीरभद्र एवं दूसरे पंख में महाकाली, मस्तक में भैरव एवं चोंच में सदाशिव स्थित हुये भगवान शिव का ये काफी अनोखा है जो चित्र में ही आपको पता लग रहा है।
पुराणों की कथाओं के अनुसार जब भगवान नृसिंह ने हिरण्याक्षकुश का वध किया था तब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और वह ब्रह्माण्ड में उत्पात मचाने लग गये। यह सब देख कर देवी देवता भगवान शिव के पास चले गए और उनसे प्रार्थना करने लग गए तब भगवान शिव ने अपना शरभ अवतार रूप धारण करा और शरभ अवतार ने भगवान नरसिंह को अपने पंजों में जकड़ लिया और आकाश में उड़ गये। शरभ अवतार ने अपनी पूंछ में नरसिंह को लपेटकर उनपर अपने चोंच से प्रहार करना शुरू कर दिया। बाद में, अपने तीखे पंजों से नरसिंह की नाभि को चीर दिया। इस आक्रमण से नरसिंह घायल हो गए और फिर उन्होंने अपने दिव्य शरीर का त्यागने का निश्चय किया। जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे उनके चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार करें। तब से भगवन शिव जी ने उनके चर्म को अपने आसन के रूप में धारण किया हुआ है।
जय शर्भेश्वर महादेव
जय माँ भगवती आदिशक्ति जगदम्बा
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