बरगद पेड़ को अक्षय वट भी कहा जाता है। इस पेड़ की जितनी धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व है। धार्मिक महत्व के अनुसार जहां इसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश विराजमान करते हैं । वहीं, वैज्ञानिक महत्व के अनुसार पेड़ की जड़, तना एवं फल तीनों में औषधीय गुणों की भंडार पाई जाती है। विभिन्न प्रकार की असाध्य रोगों में बरगद पेड़ से बनाई गई दवा रामबाण साबित होता है।
शास्त्रों में भी बरगद पेड़ की महत्ता का वर्णन किया गया है। पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रह कर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के ‘रघुवंश’ तथा चीनी यात्री ‘ह्वेन त्सांग’ के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। अक्षय वट प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है। जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है कि बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था।
जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है। वाराणसी और गया में भी ऐसे वट वृक्ष हैं जिन्हें अक्षय वट मान कर पूजा जाता है। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वटवृक्ष है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का साक्षी है।
ज्योतीषीय दृष्टि में बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ लगाते हैं। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है इसीलिए संतान के इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण बरगद काटा नहीं जाता। अकाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं। अपनी विशेषताओं और लम्बे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट भी कहा जाता है। वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा ‘मणिभद्र’ से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। यक्ष से निकट संबंध के कारण ही वटवृक्ष को ‘यक्षवास’, ‘यक्षतरु’, ‘यक्षवारूक’ आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
बरगद के टोटके और उपाय
सनातन और ज्योतिष परंपरा के साथ ही शकुन शास्त्र भी बरगद से जुड़े कई उपायों का वर्णन करते हैं. अगर आपके जीवन में कोई समस्या है, कोई कष्ट न कट रहा हो तो बरगद के कुछ टोटके या उपाय किए जाते हैं. इससे वे समस्याएं दूर हो सकती हैं. जानिए बरगद के किए जाने वाले ज्योतिषीय उपाय-
Tags: Banyan Tree, बरगद पेड़
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