प्रथम
चैत्रे मासि सितेपक्षे पौर्णिमास्यां कुजेऽहनि।
अर्थात
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन
द्वितीय
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी भौमवार स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में महानिशा में अंजना देवी ने हनुमानजी को जन्म दिया था।
ऊर्जस्य चासिते पक्षे स्वात्यां भौमे कपीश्वरः |
मेषलग्नेऽञ्जनीगर्भाच्छिवः प्रादुर्भूत् स्वयम् ||
[ उत्सवसिन्धु ]
कार्तिकस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि |
भौमवारेऽञ्जना देवी हनुमंतमजीजनत् ||
[ वायुपुराण ]
तृतीय
कल्पभेद से कुछ विद्वान इनका प्राक़ट्य काल चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में मानते हैं।
चैत्रे मासि सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे |
नक्षत्रे समुत्पन्नो हनुमान् रिपुसूदनः ||
[ आनंदरामायण ]
श्रीहनुमानजी के प्राकट्य को ले कर और भी कई विकल्प शास्त्रों में उपलब्ध हैं।
हनुमानजी का जन्म मूँज की मेखला से युक्त
कौपीन से संयुक्त और यज्ञोपवीत से विभूषित ही हुआ था। और ये सब श्रृंगार सदा हनुमानजी के साथ ही रहता है।
चैत्रे मासि सिते पक्षे पौर्णमास्यां कुजेऽहनि |
मौञ्जीमेखलया युक्तः कौपीनपरिधारकः ||
[ हनुमदुपासना कल्पद्रुमे ]
बालार्कायुततेजसं त्रिभुवनप्रक्षोभकं सुन्दरं सुग्रीवाद्यखिलप्लवङ्गनिकरैराराधितं साञ्जलिम्।
नादेनैव समस्तराक्षसगणान् सन्त्रासयन्तं प्रभुं श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम्॥
आमिषीकृतमार्ताण्डं गोष्पदीकृतसागरम्।
तृणीकृतदशग्रीवमाञ्जनेयं नमाम्यहम् ॥
श्री हनुमान पंचरत्न
शं शं शं सिद्धिनाथं प्रणमति चरणं वायुपुत्रं च रौद्रम्।
वं वं वं विश्वरुपं ह ह ह ह हसितं गजितं मेघछत्रम्॥
तं तं त्रैलोक्यथं तपतिदिनकरं तं त्रिनेत्र स्वरूपम्।
कं कं कन्दर्पवश्यं कमलमनहरं शाकिनीकालरूम्॥
रं रं रं रामदूतं रणगजदमितं रावणच्छेददक्षम्।
बं बं बं बालरूपं नतगिरीचरणं कम्पितं सूर्यबिंबम्॥
मं मं मं मंत्रसिद्धिं कपिकुलतिलकं मर्थनं शाकिनीनाम्।
हुं हुं हुं हुंकारबीजं हनिहनुमतं हन्यते शत्रुसैन्यम्॥
दं दं दं दीर्घरूपं धरकरशिखरं पातितं मेघनाथम्।
ऊं ऊं उच्चाटितं वै सकलभुवनतलं योगिनीवृंदरूपम्॥
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं क्रमति च जलधिं ज्वालितं रक्षदुर्गम्।
क्षें क्षें क्षें क्षेमतत्वं दनुरूहकुलकं मुच्यते बिम्बाकारम्॥
कं कं कं कालदुष्टं जलनिधीतरणं राक्षसानां विनाशे।
दक्षम् श्रेष्टम् त्रिभुवनचरतां प्राणिना प्राणरूपम्॥
ह्रां ह्रां ह्रां ह्रस्तत्त्वं त्रिभुवनचरितं दैवतं सर्वभूते।
देवानां च त्रयाणां फणिभुवनदरं व्यापकं वायुरूपम्॥
त्वं त्वं त्वं वेदतत्त्वं बहुरुचयजुषां सामचाथर्वरूपम्।
कं कं कं कन्दने त्वं ननु कमलतले राक्षसान् रौद्ररूपान्॥
खं खं खं खङगहस्तं झटिति भुवतले त्रोटितं नागपाशम्।
ॐ ॐ ॐ ॐकारूपम् त्रिभुवनपठितम् वेदमंत्रधिमंत्रम्॥
ॐ श्री हनुमन्ताय पंचवदनाय महाबलाय नमः ॐ॥
हनुमान जी की पूजा का विग्रह अनुसार फल
भादौं में सिंदूर से, हनुमत का अभिषेक।
प्रेम भाव से जो करै, पावै बुद्धि विवेक।।
1 पूर्वमुखी हुनमान जी–
पूर्व की तरफ मुख वाले बजरंबली को वानर रूप में पूजा जाता है। इस रूप में भगवान को बेहद शक्तिशाली और करोड़ों सूर्य के तेज के समान बताया गया है। शत्रुओं के नाश के बजरंगबली जाने जाते हैं। दुश्मन अगर आप पर हावी हो रहे तो पूर्वमूखी हनुमान की पूजा शुरू कर दें।
2 पश्चिममुखी हनुमान जी–
पश्चिम की तरफ मुख वाले हनुमानजी को गरूड़ का रूप माना जाता है। इसी रूप संकटमोचन का स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ अमर है उसी के समान बजरंगबली भी अमर हैं। यही कारण है कि कलयुग के जाग्रत देवताओं में बजरंगबली को माना जाता है।
3 उत्तरामुखी हनुमान जी–
उत्तर दिशा की तरफ मुख वाले हनुमान जी की पूजा शूकर के रूप में होती है। एक बात और वह यह कि उत्तर दिशा यानी ईशान कोण देवताओं की दिशा होती है। यानी शुभ और मंगलकारी। इस दिशा में स्थापित बजरंगबली की पूजा से इंसान की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है। इस ओर मुख किए भगवान की पूजा आपको धन-दौलत, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लंबी आयु के साथ ही रोग मुक्त बनाती है।
4 दक्षिणामुखी हनुमान जी–
दक्षिण मुखी हनुमान जी को भगवान नृसिंह का रूप माना जाता है। दक्षिण दिशा यमराज की होती है और इस दिशा में हनुमान जी की पूजा से इंसान के डर, चिंता और दिक्कतों से मुक्ति मिलती है। दक्षिणमुखी हनुमान जी बुरी शक्तियों से बचाते हैं।
5 ऊर्ध्वमुख–
इस ओर मुख किए हनुमान जी को ऊर्ध्वमुख रूप यानी घोड़े का रूप माना गया है। इस स्वरूप की पूजाकरने वालों को दुश्मनों और संकटों से मुक्ति मिलती है। इस स्वरूप को भगवान ने ब्रह्माजी के कहने पर धारण कर हयग्रीवदैत्य का संहार किया था।
6 पंचमुखी हनुमान–
पंचमुखी हनुमान के पांच रूपों की पूजा की जाती है। इसमें हर मुख अलग-अलग शक्तियों का परिचायक है। रावण ने जब छल से राम लक्ष्मण बंधक बना लिया था तो हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण कर अहिरावण से उन्हें मुक्त कराया था। पांच दीये एक साथ बुझाने पर ही श्रीराम-लक्षमण मुक्त हो सकते थे इसलिए भगवान ने पंचमुखी रूप धारण किया था। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख में वह विराजे हैं।
7 एकादशी हनुमान–
ये रूप भगवान शिव का स्वरूप भी माना जाता है। एकादशी रूप रुद्र यानी शिव का ग्यारहवां अवतार है। ग्यारह मुख वाले कालकारमुख के राक्षस का वध करने के लिए भगवान ने एकादश मुख का रुप धारण किया था। चैत्र पूर्णिमा यानी हनमान जयंती के दिन उस राक्षस का वध किया था। यही कारण है कि भक्तों को एकादशी और पंचमुखी हनुमान जी पूजा सारे ही भगवानों की उपासना समना माना जाता है।
8 वीर हनुमान–
हनुमान जी के इस स्वरूप की पूजा भक्त साहस और आत्मविश्वास पाने के लिए करते हें। इस रूप के जरिये भगवान के बल, साहस, पराक्रम को जाना जाता है। अर्थात तो भगवान श्रीराम के काज को संवार सकता है वह अपने भक्तों के काज और कष्ट क्षण में दूर कर देते हैं।
9 भक्त हनुमान–
भगवान का यह स्वरूप में श्रीरामभक्त का है। इनकी पूजा करने से आपको भगवान श्रीराम का भी आर्शीवद मिलता है। बजरंगबली की पूजा अड़चनों को दूर करने वाली होती है। इस पूजा से भक्तों में एग्राता और भक्ति की भावना जागृत होती है।
10 दास हनुमान–
बजरंबली का यह स्वरूप श्रीराम के प्रति उनकी अनन्य भक्ति को दिखाता है। इस स्वरूप की पूजाकरने वाले भक्तों को धर्म कार्य और रिश्ते-नाते निभाने में निपुणता हासिल होती है। सेवा और समर्णण का भाव भक्त इस स्वरूप के जरिये ही पाते हैं।
11 सूर्यमुखी हनुमान–
यह स्वरूप भगवान सूर्य का माना गया है। सूर्य देव बजरंगबली के गुरु माने गए हैं। इस स्वरूप की पूजा से ज्ञान, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि और उन्नति का रास्ता खोलता है। क्योंकि श्रीहनुमान के गुरु सूर्य देव अपनी इन्हीं शक्तियों के लिए जाने जाते हैं।
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