मंत्र शास्त्र के अनुसार  “राम” एक अग्निबीज है।

मंत्र शास्त्र के अनुसार  “राम” एक अग्निबीज है।

राम नाम का एक जाप संपूर्ण विष्णु सहस्रनाम (विष्णु के 1000 नाम) के जाप के समान है और यदि आप तीन बार कहते हैं  राम-राम -राम – यह 3 x 1000 भगवान श्री विष्णु के नाम (विष्णुसहस्र नामम) कहने के बराबर है ।

संस्कृत ग्रंथों के अनुसार एक सिद्धांत है जिसमें ध्वनियों और अक्षरों को उनकी संगत संख्याओं से जोड़ा जाता है।

 इसके अनुसार,

रा संख्या 2 को दर्शाता है

(य- 1, र – 2, ल- 3, व- 4 हिंदी वर्णानुसार)

म संख्या 5 को दर्शाता है

(प – 1, फ – 2, ब- 3, भ – 4, म – 5 हिंदी वर्मानुसार)

इस प्रकार –

राम – राम – राम

2 × 5 × 2 × 5 × 2 × 5 = 1000 हो जाता है।

श्री राम नाम की महिमा पूरे शास्त्रों में गाई गई है, पद्मपुराण में एक श्लोक आता है।

जप्तः सर्वमंत्रांश्च सर्ववेदांश्च पार्वती।

तस्मात् कोटिगुणं पुण्यं रामनामनैव लभ्यते ॥

(श्री पद्म पुराण, उत्तर खंड 281.34-35)

शिव माँ पार्वती से कहते हैं – अन्य सभी मंत्रों और सभी वेदों का जप करने से व्यक्ति को जो दिव्य फल प्राप्त होता है; श्री राम नाम का उच्चारण करने मात्र से करोड़ों गुना फल आसानी से प्राप्त हो जाता है।

और यही तरीका उनके अन्य नामों के लिए भी है।

क्योंकि यह अपने आप में सबसे महान नाम है जिसका जप कोई भी कर सकता है जिसके लिए श्री नारद मुनि ने भगवान श्री राम से वरदान मांगा था –

राम सकल नामन्ह ते अधिका।

होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥

(रामायण अरण्य कांड 42.7-8)

नारद मुनि श्री राम से कहते हैं, यद्यपि आपके अनेक नाम हैं और वेद कहते हैं कि वे सभी एक दूसरे से श्रेष्ठ हैं, फिर भी हे प्रभु! ‘राम’ नाम सभी नामों से बढ़कर होना चाहिए और पापी मनुष्यों जानवरों पक्षियों के समूह के लिए संहारक के समान होना चाहिए।

राम नाम में अखिल सृष्टि समाई हुई है। वाल्मीकि ने सौ करोड़ श्लोकों की रामायण बनाई, तो सौ करोड़ श्लोकों की रामायण को भगवान शंकर के आगे रख दिया जो सदैव राम नाम जपते रहते हैं। उन्होनें उसका उपदेश पार्वती को दिया। शंकर जी ने रामायण के तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया। तीन लोकों को तैंतीस – तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया. उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच और उस एक हज़ार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया. उसके भी तीन भाग किए एक श्लोक बच गया। इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया। एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं। उसमें दस – दस करके तीनों को दे दिए तो अंत में दो ही अक्षर बचे भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए।. राम अक्षर में ही पूरी रामायण है, पूरा शास्त्र है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि जो शक्ति भगवान् की है, उससे भी अधिक शक्ति भगवान् के नाम की है। नाम जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहराई तक उतरती हैं। इससे मन और प्राण पवित्र हो जाते हैं, शक्ति-सामर्थ्य प्रखर होने लगती है। बुद्धि का विकास होने लगता है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, मनोवांछित फल मिलता है, सारे कष्ट दूर होते हैं, संकट मिट जाते हैं, मुक्ति मिलती है, भगवत्प्राप्ति होती है, भय दूर होते हैं, लेकिन जरूरत है, तो बस सच्चे हृदय और पवित्र मन से भगवन्नाम लेने की।

मनुष्य सदा से अपनी ‘श्रद्धा’ और ‘क्षमता’ के अनुसार देव–पूजन करता आया है। हर बात में मीनमेख निकालने के स्थान पर भाव और भावना को पवित्र रखिए।

मानव जीवन का एक–एक क्षण बहुमूल्य है, यह आपके ऊपर है कि इसका उपयोग अभ्युदय के लिए करते हैं अथवा दूसरों के कार्य में मीनमेख निकालने के लिए।

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