हिंदू पंचांग में काल गणना का प्रमुख हिस्सा होती हैं-तिथियां. तिथियों के अनुसार ही व्रत-त्योहार तय किए जाते हैं. ये शुभ-अशुभ तिथियां आखिर होती क्या हैं और किस तिथि का क्या महत्व है आइये जानते हैं.
प्रत्येक हिंदू माह में 15-15 दिन के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं. हर पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पंद्रहवीं तिथि तक की संख्या होती है. शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक और कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक. इस तरह दोनों पक्षों में 15-15 दिन होते हैं. अब इनमें से कुछ तिथियां शुभ मानी गई हैं, तो कुछ अशुभ. अशुभ तिथियों में कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न नहीं किए या कराए जाते हैं. आइए जानते हैं कि तिथि के कितने प्रकार होते हैं और किन तिथियों में कौन सा कार्य करना उत्तम माना गया है.
किस तिथि में कौन सा कार्य करना होता है उत्तम
नंदा तिथि– प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं. इन तिथियों में व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है. भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए यही तिथियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं.
भद्रा तिथि– द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी भद्रा तिथि कहलाती हैं. इन तिथियों में धान, अनाज लाना, गाय-भैंस, वाहन खरीदने जैसे काम किए जाना चाहिए. इसमें खरीदी गई वस्तुओं की संख्या बढ़ती जाती है.
जया तिथि– तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी जया तिथियां कहलाती हैं. इन तिथियों में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम कर सकते हैं.
रिक्ता तिथि– चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं. इन तिथियों में गृहस्थों को कोई कार्य नहीं करना चाहिए. तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं.
पूर्णा तिथि– पंचमी, दशमी और पूर्णिमा पूर्णा तिथि कहलाती हैं. इन तिथियों में मंगनी, विवाह, भोज आदि कार्यों को किया जा सकता है.
शून्य तिथि
उपरोक्त पांच प्रकार की तिथियों के अलावा कुछ तिथियों को शून्य तिथि माना गया है. इन तिथियों में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. बाकी अन्य कार्य किए जा सकते हैं. ये तिथियां हैं चैत्र कृष्ण अष्टमी, वैशाख कृष्ण नवमी, ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, आषाढ़ कृष्ण षष्ठी, श्रावण कृष्ण द्वितीया और तृतीया, भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा एवं द्वितीया, आश्विन कृष्ण दशमी और एकादशी, कार्तिक कृष्ण पंचमी और शुक्ल चतुर्दशी, अगहन कृष्ण सप्तमी व अष्टमी, पौष कृष्ण चतुर्थी और पंचमी, माघ कृष्ण पंचमी और माघ शुक्ल तृतीया तिथि.
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