पुराने ज्योतिषी चन्द्र कुंडली पर अधिक समय देते थे। क्यों? एक दृष्टिकोण
चंद्रमा मनसो जात:! चंद्रमा हमारा मन है। ब्रह्म का मन है। मन परिवर्तन शील है, सूक्ष्म है, गहन है। चंद्रमा भी सभी ग्रहों में सबसे सूक्ष्म है और इसकी गति भी सबसे तेज है।
चन्द्रमा को “औषधीश” भी कहा गया है। देखें कालिदास का कहना-
“यातीति एकतो अस्त शिखरं पतिरोषधिनामआविष्कृतो अरुण पुरः सरः एकतो अर्कः। तेजो द्वयस्य युगपद व्यसनोदयाभ्याम लोको नियम्यदिवात्म दशान्तरेषु।”
चंद्रमा मन,भावनाएं और वह दृष्टिकोण है जिससे हम इस दुनिया को देखते हैं, जबकि लग्न वह बुद्धि है जो यह तय करती है कि हमें कुछ विशेष परिस्थितियों में क्या करना चाहिए।
कतिपय ज्योतिषी लोग यह कहकर इसे नजरअंदाज कर देते हैं कि चंद्रमा ढाई दिन तक ही एक राशि में रहता है, इसलिए इतना महत्वपूर्ण नहीं।
परन्तु ऐसा तो है नहीं।
पारगमन गोचरीय अवस्थाएं, दशा भुक्ति अन्तर्भुक्ति, विंशोत्तरी और अन्य भी चंद्रमा के नक्षत्र और राशि से ही तो तय होते हैं।
बल्कि सच तो यह है चंद्र कुंडली देखनी ही कम लोगों को आती है।
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को नोट करते चलते हैं:-
१) गोचर का अध्ययन, महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ का परस्पर संबंध इसे चन्द्रमा के ही सापेक्ष देखने चाहिए।
२) लग्न कुंडली से बन रहे योग राजयोग हो सकता है कि फल दें, न दें, विलम्ब करें परन्तु चंद्रमा से बनने वाले जो १०८ योग हैं वह अवश्य ही फल देते हैं। यहां तक कि लग्न कुंडली से बनने वाले योगों कुयोगों को पछाड़कर यह अपने फल देते हैं। जैसे कि केमद्रुम जैसे कि अनफा और सुनफा।
३) चन्द्र से बनने वाले योगों की भी कई श्रेणियां हैं। जैसे कि सुनफा के दो ऐप्लिकेशन आपको दिखाते हैं।
चंद्रमा से दूसरे घर में स्थित ग्रह सुनफा योग बनाते हैं। जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजा या उसके बराबर का पद देता है, जिसका आधुनिक शब्दावली में अर्थ शक्ति (उद्यम) हो सकता है, यह व्यक्ति को बुद्धिमान, अमीर, प्रसिद्ध बनाता है खुद की मेहनत से।
यहां ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ऋषि कभी भी दूसरे घर में योग में परिवर्तन करने वाले ग्रहों की प्रकृति के बारे में बात नहीं करते हैं। वे केवल शुभ या अशुभ नहीं होने चाहिए, उनमें से कोई भी दो योग बनाएंगे।
केवल कुछ परिवर्तन होंगे जैसे मंगल भूमि और छोटे भाई से धन दे सकता है जबकि बृहस्पति शिक्षण, प्रबंधन, बड़ों से धन दे सकता है।
यदि हम बारीकी से देखें तो हम पाते हैं कि चंद्रमा से दूसरा घर शक्ति देने वाले राजयोग भाव की तरह है।
अब इसके दो अनुप्रयोग देखिए-
अ) मान लीजिए चंद्रमा अग्नि तत्व की राशियों में है और इसके ठीक अगले भाव में लग्नेश बैठा है जो नैसर्गिक शुभ ग्रह है। अब देखिएगा उत्कर्ष और पराक्रम इस जातक का लग्न के योगकारक ग्रह की परिपक्वता आयु आने पर। यह मार्तण्ड की तरह चमकेगा।
ब) चंद्रमा किसी भी राशि का हो, अगर चंद्र से दूसरे भाव में राहु और केतु के डिपॉजिटर्स एक साथ बैठ गये, यह व्यक्ति इसका हृदय इसका मस्तिष्क इसका असर सब लाजवाब हो जाएंगे।
४) चंद्र से ३/६/१०/११ जितने शुभ ग्रह उतना ही सुंदर और सरल धन। खास तौर से तृतीय भाव – वसुमान योग।
५) एक और महत्वपूर्ण योग देखिए अगर बुध बृहस्पति की युति हो और यह युति चंद्रमा से केंद्र या त्रिकोण में हो। यह विशिष्ट शारदा योग है। इसके फल लगभग वैसे ही होते हैं जब मंगल चंद्रमा से द्वितीय या एकादश में हो। मंगल चंद्रमा से द्वितीय है तो पैदाइशी बुद्धिमान और एकादश है तो अर्जित बुद्धि समझना चाहिए।
६) राहु जिसके दस में दुनिया उसके वश में। यहां राहु चंद्र से दशम हो तो यह योग और स्पष्ट खिलता है।
७) मां को उसके स्वभाव रंग रूप रोग आदि को जितना चंद्रमा से चौथे भाव से जान पाएंगे उतना स्वयं चंद्रमा से नहीं
८) चंद्रमा से छठा घर बहुत महत्वपूर्ण है। यह मन की कमजोरी है। अगर यहां शुभ ग्रह बैठा हो तो कमाल का वसुमान योग बन जाएगा। या अगर चंद्रमा से छठे भाव का स्वामी क्रूर हुआ और उच्च का हुआ तो बयालीस की आयु में ‘अधि’ और ‘वसु’ दोनों का फल देगा। बड़ा व्यापारी नेता अधिकारी बना देगा।
९) ऐसे ही अमला या अमलकीर्ति योग चंद्रमा से दशम अगर शुभ ग्रह हो तो यह योग बनता है।मेरे निजी अनुभव में चंद्र से दशमस्थ ग्रह अगर अशुभ स्वभाव का है और उच्च का है तो भी अमला जैसे ही फल और कभी कभी तो उससे भी बढ़कर फल प्राप्त होते हैं। मन का कर्म भाव।
१०) ऋषियों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पिता का मूल्यांकन सूर्य से नौवें घर में, मां का चंद्रमा से चौथे घर में, भाइयों का मंगल से तीसरे घर में, मामा का बुध से छठे घर में और इसी तरह आगे भी कहा जाना चाहिए।
इस सूत्र का एक एक्सपेंशन इस तरह भी देख सकते हैं कि चौथे भाव से हृदय को भी देखते हैं। चंद्र से चौथा भाव हमारी प्राथमिक शिक्षा भी बता देगा। महापुरुषों ने कहा ही है कि माता का हृदय हमारी प्राथमिक पाठशाला होती है।
११) जैमिनी ज्योतिष में एक कहावत है कि यदि सूर्य, शुक्र या राहु आरूढ़ लग्न से द्वादश भाव में हों तो व्यक्ति को सरकार से नुकसान होगा और यदि चंद्रमा भी इस पर दृष्टि डालता है तो ऐसा होना निश्चित है। चंद्रमा घटनाओं और परिस्थितियों की निश्चितता का भी कारक है।
यह होगा या नहीं होगा, बिना चंद्रमा के अध्ययन के इसका ज्ञान संभव नहीं।
अब जरा पौराणिक कथानकों में चलें
१) चन्द्रमा दत्तात्रेय और दुर्वासा के सगे भाई हैं। चंद्र से तृतीय भाव में इनके दोनों भाइयों के कुछ गुण अवश्य दिखेंगे
२) चन्द्रमा शंकर के साढ़ू हैं। चंद्र से तीसरे भाव में शिव का भी कोई गुण अवश्य दिखाई देगा
३) चंद्रमा भोगी है, (सत्ताइस नक्षत्र इनकी पत्नियां हैं और बृहस्पति की पत्नी प्रेमिका, रोहिणी पर आसक्त)अवैध संबंधों का कारक भी और साक्षी भी। अहिल्या और इन्द्र की कथा देखें। अवैध शारीरिक संबंध चंद्र से देखने चाहिए
४) चंद्रमा दक्ष और गणपति से शापित हैं। दक्ष के दामाद और गणपति तथा उनकी माता की उपस्थिति में सौम्य हो जाते।
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