सूर्य:
अगर सूर्य नीच का हो तो ह्रदय रोग, उदर संबंधी विकार, नेत्र संबंधी रोग, धन नाश, ऋण का बोझ, मानहानि, अपयश एवं ऐश्वर्य नाश आदि होते हैं। ऐसे में जातक को सूर्य नमस्कार, सूर्यपूजा, हरिवंश पुराण आदि का पाठ करना चाहिए।
चंद्र:
अगर चंद्रमा निर्बल या अनिष्ट हो तो मानसिक रूप से तनाव, दुर्बल मनस्तिथि, शारीरिक आर्थिक परेशानी, फेफड़ा संबंधी रोग, माता को बीमारी कष्ट, सिर दर्द आदि स्थिति पैदा होती है। ऐसे में कुल देवी या देवता की उपासना करें। निसंदेह लाभ मिलेगा और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी।
मंगल:
मंगल यदि निर्बल या अनिष्ट हो तो भाई से विरोध, अचल संपत्ति में विवाद, सैनिक पुलिस कार्रवाई, आग, हिंसा, चोरी, अपराध और गुस्से की संभावना है। इससे जिगर के रोग, होंठ का फटना आदि स्थितियां भी उत्पन्न होती है। ऐसे में हनुमानजी की उपासना जैसे सुंदरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमान स्तोत्र, हनुमान चालीसा आदि का पाठ करें और प्रसाद चढ़ाकर लोगों में बांटे। ध्यान रहे वह प्रसाद खुद ना खाएं।
बुध:
यह शूद्र जाती, हरित वर्ण और पश्चिम दिशा का स्वामी होता है। यह चतुरता, शीघ्रता व बल का कारक होता है। इसका प्रमाण श्रीकृष्ण की कुंडली में मिलता है, भगवान कृष्ण की कुंडली में पांचवें स्थान के उच्च बुद्ध ने उनको इतना बड़ा बुद्धिजीवी, कूटनीतिज्ञ व ज्ञानी बनाया, जो गीता के ज्ञान से परिलक्षित होता है। अगर बुध निर्बल हो तो पथरी, बवासीर, ज्वर, गुर्दा, स्नायु रोग, दंत विकार आदि होते हैं। ऐसे में दुर्गा सप्तशती का कवच, कीलक व अर्गला स्तोत्र का पाठ करें तथा पन्ना धारण करना चाहिए।
गुर:
उत्तर दिशा का स्वामी बृहस्पति देवताओं का गुरु है। यदि बृहस्पति अशुभ हो तो पुत्र हानि, संतान में बाधा, विवाह में परेशानी, स्वजनों से वियोग, पत्नी से तनाव एवं घर में विपन्नता होती है। गौरतलब है कि तब पीलिया, एकांतिक ज्वर, हड्डी का दर्द, दंत विकार या पुरानी खांसी उभर कर आती है। ऐसे में जातक को हरी पूजन, हरिवंश पुराण या श्रीमद् भागवत का पाठ करना चाहिए।
शुक्र:
शुक्र दैत्यों का गुरु है। इस ग्रह को भृगु नंदन भी कहते हैं, क्योंकि यह भृगु ऋषि का पुत्र है। अगर शुक्र निर्बल या बद स्थिति में हो तो जातक को खुशी में गमी, भूत प्रेत बाधा, विषधर जंतुओं से पाला पड़ना, शीघ्रपतन, सेक्स संबंधी परेशानी, संतान उत्पन्न करने में अक्षमता, दुर्बल अशक्त शरीर, अतिसार, अजीर्ण, वायु प्रकोप आदि रोग उत्पन्न होते हैं। इसलिए जातक को लक्ष्मी जी का सानिध्य प्राप्त करना चाहिए।
शनि:
पश्चिम दिशा का अधिष्ठाता शनि ग्रह सूर्य पुत्र माना जाता है। इसके द्वारा कठिन कार्य करने की क्षमता, गंभीरता और पारस्परिक प्रेम आदि की भावना जागृत होती है। साथ ही पति-पत्नी में मनमुटाव, गुप्त रोग, अग्निकांड दुर्घटना, अयोग्य संतान, आंखों में कष्ट, पेचिश, अतिसार, दमा, संग्रहणी, मधुमेह, पथरी, मूत्र विकार, रक्तचाप, कब्ज आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। उक्त रोगों व कष्टों से मुक्ति के लिए राजा का आशीर्वाद व सम्मान प्राप्त करें या भैरव मंदिर में शराब चढ़ाएं। मद्यपान निषेध रखें अवश्य लाभ होगा।
राहु:
राहु एक छाया ग्रह है। इसके दुष्प्रभाव से आकस्मिक घटना, भूत प्रेत बाधा, वैराग्य, ज्वर, वैधव्य, विदेश यात्रा, मिर्गी, सिर पर चोट, राज कोप, मानसिक रोग, टीबी, बवासीर, प्लीहा आदि रोग होते हैं। राहों विशेष तौर पर राजनीति के क्षेत्र का कार्केश ग्रह माना जाता है। ऐसी परिस्थिति में जातक को चाहिए कि वह कन्यादान, गणेश पूजा या कन्याओं की शादी पर पैसे दान करें।
केतु:
केतु का प्रभाव मंगल की तरह होता है। फिर भी केतु छाया ग्रह है। इसके बद या दुष्प्रभाव से गूढ़ विद्याओं का आत्मज्ञान होना अथवा वैराग्य प्राप्त होना बताया जाता है। इससे बीमारियों का प्रकोप बना रहता है। घुटनों में दर्द, मूत्र विकार, अजीर्ण, मधुमेह, ऐश्वर्य नाश, ऋण की बढ़ोतरी, पुत्र का दुर्व्यवहार तथा पुत्र पर संकट आते हैं। इसके कुप्रभाव से मुक्ति के लिए बछिया दान अथवा गणेश पूजा करनी चाहिए। कष्टों से अवश्य छुटकारा मिलेगा।