मानव के समस्त कार्य और व्यवसाय को संचालित करने में नेत्रों की भूमिका जिस प्रकार अग्रगण्य मानी गई है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान, विज्ञान विद्या के क्षेत्र में ज्योतिष विज्ञान दृष्टि का कार्य करता है।
“वेदचक्षु: क्लेदम् स्मृतं ज्योतिषम्”। ज्योतिष को वेद की आंख कहा गया है। जिस प्रकार वट वृक्ष का समावेष उसके बीज में होता है ठीक उसी प्रकार जन्म-जन्मांतरों के कर्मों का बीज रूप होता है जातक की जन्मपत्री।
जन्मपत्री के पंचम भाव से विद्या का विचार उत्तर भारत में किया जाता है। दक्षिण भारत में चतुर्थ भाव व द्वितीय भाव से विद्या बुद्वि का विचार किया जाता है। द्वितीय भाव धन व वाणी का स्थान है और विद्या को मनीषियों ने धन ही कहा है जिसका कोई हरण नहीं कर सकता है। विद्या एक ऐसा धन है जिसे न कोई छीन सकता है न चोरी कर सकता है। विद्या धन देने से बढ़़ती है। विद्या ज्ञान की जननी है। जीवन को सफल बनाने की दिशा में शिक्षा ही एक उच्च सोपान है जो अज्ञानता के अंधकार से बंधन मुक्त करती है। शिक्षा के बल से ही मानव ने गूढ़ से गूढ़तम (अंधकार) रहस्य से पर्दा उठाया है। आदिकाल से ही मानव को अपना शुभाशुभ भविष्य जानने की उत्कंठा रही है। ज्योतिष विज्ञान इस जिज्ञासा वृत्ति का सहज उत्कर्ष है।
जन्मकुंडली का चतुर्थ भाव बुद्वि, पंचम भाव ज्ञान, नवम भाव उच्च शिक्षा की स्थिति को दर्शाता है तो द्वादश भाव की स्थिति जातक को उच्च शिक्षा हेतु विदेश गमन कराती है। ज्ञात हो कि अष्टम भावस्थ क्रूर ग्रह भी शिक्षा हेतु विदेश वास कराता है। किसी भी परीक्षा में सफलता की कुंजी है छात्र की योग्यता और कठिन परीश्रम। यदि इसके साथ-साथ जन्मकुंडली के ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त हो तो सफलता मिलती ही है। अपने देश में यह आम धारणा बनी है कि सर्विस पाने के लिए ही शिक्षा ग्रहण की जाती है, यह विचार बहुत ही संकीर्ण है। विद्या व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारती व संवारती है। वेद पुराण सभी में वर्णित है कि जातक को प्रथम विद्या अध्ययन करना चाहिए तत्तपश्चात् कार्य क्षेत्र में उतरे। शिक्षित व्यक्ति को ही विद्याबल से यश, मान, प्रतिष्ठा स्वत: मिलती चली जाती है। शिक्षा हो अथवा सर्विस सभी जगह व्यक्ति को प्रतियोगिता का सामना करना ही पड़ता है। परीक्षा में सफलता हेतु आवश्यक है लगन, कड़ी मेंहनत व संबंधित विषयों का विशद् गहन अध्ययन। किंतु सारी तैयारियां हो जाने के पश्चात् भी कभी-कभी असफलता ही हाथ लगती है। जैसे
(1) अचानक बीमार पड़ जाना।
(2) परीक्षा भवन में सब कुछ भूल जाना।
(3) परीक्षा से भयभीत होकर पूर्ण निराश होना।
(4) स्वयं के साथ अनायास दुर्घटना घट जाना कि परीक्षा मेंं बैठ ही न सके।
(5) परिवार में अनायास दु:खद घटना घट जाना, जिससे पढऩे से मन उचाट होना आदि अनेक कारणों से परीक्षा में व्यवधान आते हैं जिससे छात्रों को असफलता का मुंह देखना पड़ता है।
ग्रहों का प्रभाव (चंद्र):
चंद्र मन का कारक ग्रह है और परीक्षा में सफलता हेतु मन की एकाग्रता अति आवश्यक है। ज्योतिषिय दृष्टि से यदि चंद्र शुभ, निर्मल, डिग्री आधार पर बलवान हो, किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो व्यक्ति बढ़़ी आसानी से (लगन से) अपने विषय में महारत हासिल करेगा। चंद्र यदि पापाक्रांत हो राहु, शनि, केतु का साथ हो पंचमेंश छठे, आठवें, द्वाद्वश भाव में हो तो शिक्षा अधूरी रह जाएगी। व्यक्ति सदैव चिंताग्रस्त व विकल रहेगा।
बुध:
बुध बुद्वि, विवेक, वाणी का कारक ग्रह है। बुध गणितिय योग्यता में दक्ष और वाणी को ओजस्वी बनाता है। बुध यदि केंद्र में भद्र योग बनाये। सूर्य के साथ बुधादित्य योग घटित करे, निज राशि में बलवान हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा में सफलता हासिल करता है किंतु यदि बुध नीच, निर्बल, अस्त, व क्रूर ग्रहों के लपेटे में हो तो बुध अपनी शुभता खो देगा। फलत: गणितीय क्षेत्र, व्यापार क्षेत्र, कम्प्यूटर शिक्षा में असफल हो जाता है। यदि जन्मकुंडली में बुधादित्य-योग, गजकेसरी-योग, सरस्वती-योग, शारदा-योग, हंस-योग, भारती-योग, शारदा लक्ष्मी योग हो तो जातक उच्च शिक्षा अवश्य प्राप्त कर (अच्छे अंक से) सफल होगा। द्वितीय भाव का बुध मधुरभाषी व व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है व बुद्वि बल चतुरता से सफलता की ओर अग्रसर करता है। जबकि पंचम भाव का बुध व्यक्ति को कलाप्रिय व विविध विषयों का जानकार व अपने व्यवहार से दूसरों को वश में करने वाला होता है।
गुरु:
उच्च स्तरीय ज्ञान-गुरु ही दिलाते हैं। गुरु ज्ञान का विस्तार करते हैं। अत: जन्मकुंडली मेंं गुरु की शुभ स्थिति विद्या क्षेत्र व प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिलाती है। गुरु शुक्र का समसप्तक योग यदि पंचम व एकादश भाव में बने व केंद्र में शनि, बुध, उच्च का हो तो व्यक्ति कानून की पढ़़ाई में उच्च शिक्षित होगा और शनि गुरु की युति न्यायाधीश बना देगी।
ज्योतिष के आधार पर परीक्षा में असफलता के योग:
(1) यदि चतुर्थेश, छठे, आठवें द्वाद्वश हो तो उच्च शिक्षा में बाधा, पढ़़ाई में मन नहीं लगेगा।
(2) यदि चतुर्थेष निर्बल, अस्त, पाप, व क्रूर ग्रहों से आक्रांत हो तो शिक्षा प्राप्ति में बाधा।
(3) यदि द्वितियेश पर चतुर्थ, पंचम भाव पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो या इन भावों ने अपना शुभत्व खो दिया हो तो शिक्षा प्राप्ति में बाधा।
(4) ग्रहण योग बना हो। उक्त स्थानों में या ग्रहणकाल में जन्म हुआ हो तो शिक्षा अधूरी।
(5) गुरु नीच, निर्बल, पापाक्रांत होने से उच्च शिक्षा प्राप्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा।
(6) जन्मकुंडली में केंद्रुम योग हो। शिक्षा में बाधा।
(7) चंद्र के साथ शनि उक्त स्थानों में विष योग बना रहा हो तो पढ़़ाई अवरुद्ध।
(8) कुंडली में क्षीण चंद्र हो तो शिक्षा में बाधा आती है।
(9) बुध नीच, निर्बल, अशुभ हो तो शिक्षा पूर्ण नही होगी।
(10) आत्मकारक ग्रह सूर्य यदि पीडि़त, निर्बल अशुभ प्रभाव में हो तो प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में ही छात्र का आत्म बल घट जाने से प्रायोगिक (प्रेक्टिकल) परीक्षा में ही घबरा कर घर बैठ जाएगा। उच्च शिक्षा से वंचित हो जाएगा।
(11) पंचम, द्वितीय, चतुर्थ, व अष्टम में शनि नीच का हो तो शिक्षा अधूरी रहे। त्वरित उपाय करें।
ग्रहयोगों के आधार पर प्रतिस्पर्धा में सफलता:
(1) लग्नेश पंचमेंश चतुर्थेश का संबंध केंद्र या त्रिकोण से बनता हो या इनमें स्थान परिर्वतन हो तो सफलता मिलेगी।
(2) कुंडली में कहीं पर भी बुधादित्य योग हो तो सफलता मिलेगी लेकिन बुध दस अंश के ऊपर न हो।
(3) केंद्र में उच्च के गुरु, चंद्र शुक्र, शनि यदि हो तो जातक परीक्षा (प्रतियोगिता) में असफल नहीं होता।
(4) पंचम के स्वामी गुरु हो और दशम भाव के स्वामी शुक्र हो तथा गुरु दशम भाव मेंं शुक्र पंचम भाव मेंं हो तो निश्चित सफलता मिलती है।
(5) लग्नेश बलवान हो। भाग्येश उच्च का होकर केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो सफलता हर क्षेत्र में मिलती है।
(6) लग्नेश त्रिकोण में, धनेश एकादश में तथा पंचम भाव में, पंचमेंश की शुभ दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है। प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करता है।
(7) चंद्र गुरु में स्थान परिवर्तन हो चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो सरस्वती योग बनने से ऐसा जातक सभी क्षेत्र में सफल होगा, कहीं भी प्रयास नहीं करना पड़ेगा।
(8) चारों केंद्र स्थान में कहीं से भी गजकेसरी योग बनता हो तो ऐसा बालक प्रतिस्पर्धा में अवश्य सफल होता है।
(9) गुरु लग्न भावस्थ हो और बुध केंद्र में नवमेंश, दशमेंश, एकादशेश से युति कर रहा हो या मेंष लग्न में शुक्र बैठे हो सूर्य शुभ हो और शुक्र पर शुभ-ग्रह की दृष्टि हो तो ऐसा जातक उच्च स्तरीय प्रशासनिक प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होगा ही।
(10) कुंडली में पद्मसिंहासन योग ऊंचाई देगा।
(11) पंचमस्थ गुरु जातक को बुद्धिमान बनाता है।
(12) गुरु द्वितियेश हो व गुरु बली सूर्य, शुक्र से दृष्ट हों तो व्याकरण के क्षेत्र में सफलता।
(13) केंद्र या त्रिकोण में गुरु हो, शुक्र व बुध उच्च के हो तो जातक साइन्स विषय में सफलता पाता है।
(14) धनेश बुध उच्च का हो, गुरु लग्न मेंं और शनि आठवें में हो तो विज्ञान क्षेत्र में सफलता मिलेगी।
(15) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, का संबंध बुध, सूर्य, गुरु व शनि इनमें से हो तो जातक वाणिज्य संबंधी विषयों से अपनी शिक्षा पूर्ण करता है।
(16) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम का संबंध सूर्य मंगल चंद्र शनि व राहु से हो तो जातक को चिकित्सा संबंधी विषयों में अपनी शिक्षा पूर्ण करनी चाहिये।
(17) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम व दशम का संबंध सूर्य, मंगल, शनि व शुक्र हो तो जातक इन्जीनियरिंग संबंधी विषयों से अपनी शिक्षा पूर्ण करता है।
(18) द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम, नवम, दशम का संबंध सूर्य, बुध, शुक्र, गुरु, ग्रहों से हो तो जातक कला क्षेत्र में अपनी शिक्षा अवश्य पूर्ण करता है।
(19) द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, स्थान से सूर्य, मंगल, गुरु, चंद्र, शनि, व राहु का संबंध हो तो जातक विज्ञान संबंधी विषय में शिक्षा अवश्य पूर्ण करता है। समाधान: स्मरण शक्ति में वृद्धि एवं तीव्र बुद्धि के लिए गायत्री यंत्र का लॉकेट पहनें श्री गायत्री वेदों की माता है जो वेद वेदांत, अध्यात्मिक, भौतिक उन्नति व ज्ञान-विज्ञान की दात्री है।
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