नक्षत्रों का वर्गीकरण

नक्षत्रों का वर्गीकरण

हम अक्सर सुनते हैं कि ‘ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे’ या फिर ‘सारा खेल तो ग्रह नक्षत्रों का है’… यानी किस्मत को मानने वालों के लिए ग्रह-नक्षत्र बहुत मायने रखते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र तो पूरी तरह ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित है। आखिर ये ग्रह नक्षत्र हैं क्या और कैसे इनसे जुड़ा है हमारी किस्मत का कनेक्शन। नौ ग्रहों का हमारी किस्मत पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। आज जानने की कोशिश करते हैं नक्षत्रों के बारे में। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का सिद्धांत काफी अहम है। इसे पूरी दुनिया में प्रचलित तमाम ज्योतिष पद्धतियों की तुलना में सबसे ज्यादा सटीक और अचूक माना जाता है।

क्या हैं नक्षत्र

दरअसल हम जब अंतरिक्ष विज्ञान या अंतरिक्ष शास्त्र की बात करते हैं तो चंद्रमा या तमाम ग्रहों की गति या चाल से बनने वाले समीकरणों की बात होती है। अंतरिक्ष में चंद्रमा की गति और पृथ्वी के चारों ओर घूमने की या परिक्रमा करने की प्रक्रिया अनवरत चलती है। चंद्रमा पृथ्वी की पूरी परिक्रमा 27.3 दिनों में करता है और 360 डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के 27 समूहों के बीच से गुजरता है। चंद्रमा और सितारों के समूहों के इसी तालमेल और संयोग को नक्षत्र कहा जाता है।

जिन 27 सितारों के समूह के बीच से चंद्रमा गुजरता है वही अलग अलग 27 नक्षत्र के नाम से जाने जाते हैं। यानी हमारा पूरा तारामंडल इन्हीं 27 समूहों में बंटा हुआ है। और चंद्रमा का हर एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है। किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा या सितारों के जिस समूह से होकर गुजर रहा होगा वही उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है। और यही आपकी किस्मत की चाभी होती है।

कौनकौन से हैं 27 नक्षत्र

अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।

इन 27 नक्षत्रों को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है – शुभ नक्षत्र, मध्यम नक्षत्र और अशुभ नक्षत्र।

शुभ नक्षत्र

शुभ नक्षत्र वो होते हैं जिनमें किए गए सभी काम सिद्ध और सफल होते हैं। इनमें 15 नक्षत्रों को माना जाता है – रोहिणी, अश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, घनिष्ठा, पुनर्वसु।

मध्यम नक्षत्र

मध्यम नक्षत्र के तहत वह नक्षत्र आते हैं जिसमें आम तौर पर कोई विशेष या बड़ा काम करना उचित नहीं, लेकिन सामान्य कामकाज के लिहाज से कोई नुकसान नहीं होता। इनमें जो नक्षत्र आते हैं वो हैं पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा।

अशुभ नक्षत्र

अशुभ नक्षत्र में तो कभी कोई शुभ काम करना ही नहीं चाहिए। इसके हमेशा बुरे नतीजे होते हैं या कामकाज में बाधा जरूर आती है। इसके तहत जो नक्षत्र आते हैं वो हैं- भरणी, कृतिका, मघा और आश्लेषा। ये नक्षत्र आम तौर पर बड़े और विध्वंसक कामकाज के लिए ठीक माने जाते हैं जैसे – कोई बिल्डिंग गिराना, कब्ज़े हटाना, आग लगाना, पहाड़ काटने के लिए विस्फोट करना या फिर कोई सैन्य या परमाणु परीक्षण करना आदि। लेकिन एक आम आदमी या जातक के लिए ये चारों ही नक्षत्र बेहद घातक और नुकसानदेह माने जाते हैं।

क्या है पंचक और गंडमूल ?

पंचक

आपने पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में भी अक्सर सुना होगा। हमारे घर के बुजुर्ग अक्सर ये कहते हैं कि पंचक लग गया, या पंचक में कोई काम नहीं करना चाहिए या फिर इस बच्चे में गंडमूल दोष है या गंडमूल की पूजा करानी है आदि-इत्यादि। आखिर ये पंचक और गंडमूल या मूल है क्या। पहले जानते हैं पंचक के बारे में।

जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर होता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। इसे शुभ नहीं माना जाता। इस दौराना घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, पलंग या कोई फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।

गंडमूल

उसी तरह गंडमूल या मूल नक्षत्र को भी बेहद अशुभ माना जाता है। दरअसल नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और मूल नक्षत्र के तहत आने वाले आश्विन, आश्लेषा, मघा, मूला और रेवती नक्षत्रों को उग्र श्रेणी का माना जाता है। इन्हें ही मूल, गंडात या सतैसा भी कहा जाता है। जो लोग इसमें पैदा होते हैं, उनका जीवन बेहद उथल पुथल और तनावों से भरा होता है, इसीलिए बच्चों के जन्म के 27 दिन के बाद इसकी पूजा करवाई जाती है और इसके बुरे प्रभावों को खत्म किया जाता है।

ध्रुवस्थिर नक्षत्र

इन नक्षत्रों की श्रेणी में उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी नक्षत्र के साथ रविवार को रखा गया है। इन नक्षत्रों में स्थिर स्वभाव के कार्य जैसे मकान की नीव रखना, कुआं खोदना, भवन निर्माण, उपनयन संस्कार, कृषि से जुड़े कार्य, नौकरी आरंभ करना आदि आते हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य मृदु नक्षत्र में किए जाते हैं, उन कार्यों को इन नक्षत्र में भी किया जा सकता है।

चर अथवा चल नक्षत्र

इसमें स्वाति नक्षत्र, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और सोमवार को लिया गया है। सभी चर अथवा चल स्वभाव के कार्य जैसे वाहन चलाना अथवा वाहन की सवारी करना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना, यात्रा करना आदि ऐसे कार्य किए जाते हैं जिनमें गतिशीलता रहती है। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य शिप्र लघु नक्षत्रों में किए जाते हैं उन कार्यो को भी इन नक्षत्र में किया जा सकता है।

उग्रक्रूर नक्षत्र

इसमें पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरनी, मघा और मंगलवार का दिन शामिल किया गया है। आक्रमक स्वभाव के कार्य इन नक्षत्र में किए जाते हैं। हत्या, विश्वासघात, अग्नि से संबंधित अशुभ कार्य, चोरी, विष देना और विष संबंधित दवाइयों पर खोज, शल्य चिकित्सा, हत्यारों का क्रय विक्रय अथवा प्रयोग आदि सभी क्रूर प्रवृत्ति के कार्यों के लिए अनुकूल नक्षत्र माने गए हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य दारुण – तीक्ष्ण नक्षत्रों में किए जा सकते हैं उन्हें इन नक्षत्र में भी किया जा सकता है। यह नक्षत्र शुभ कार्यों के लिए सामान्य वर्जित माने जाते हैं।

मिश्र साधारण नक्षत्र

इस श्रेणी में विशाखा तथा कृतिका नक्षत्र और बुधवार का दिन लीया गया है। इसमें अग्नि संबंधित कार्य, धातु को गर्म करके अथवा उन्हें गलाकर ढालने का काम, गैस संबंधित कार्य, सजाने संवारने के कार्य, दवा निर्माण आदि के कार्य किए जाते हैं।

क्षिप्रलघु नक्षत्र

इसमें हस्त नक्षत्र, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत और बृहस्पतिवार का दिन लेते हैं। इन नक्षत्रों में दुकान का प्रारंभ तथा निर्माण किया जाता है, विक्रय करने, शिक्षा का प्रारंभ, गहने अथवा जवाहरात बनाने अथवा पहनने, मैत्री अथवा किसी से साझेदारी का काम, कला सीखना अथवा दिखाने का काम, किसी नए काम को सीखने का काम, इन नक्षत्रों में करना उचित माना गया है। जो कार्य चल अथवा चर नक्षत्र में किए जाते हैं उन्हें भी इन नक्षत्र में किया जा सकता है।

मृदुमैत्र नक्षत्र

इसमें मृगशिरा नक्षत्र, रेवती, चित्रा, अनुराधा और शुक्रवार का दिन शामिल किया गया है। गायन सीखना, आरंभ करना, संगीत सीखना, वस्त्र सिलवाने अथवा पहनने आदि का काम इन नक्षत्रों में किया जाता है। जिन कार्यों को ध्रुव – स्थिर नक्षत्र में किया जाता है उन सभी कार्यों को भी इन नक्षत्र में किया जा सकता है।

तीक्ष्णदारुण नक्षत्र

इनमें मूल नक्षत्र, जेष्ठा, आद्रा, अश्लेषा और शनिवार का दिन शामिल किया गया है। इन  तीक्ष्ण – दारुण नक्षत्र में तांत्रिक क्रिया, हत्या, काला जादू, आक्रमक व मृत्यु तुल्य कृत्यों को करना, जानवरों को प्रशिक्षण देना तथा उन्हें वश में करना, साधना जैसे हठयोग आदि कार्य किए जाते हैं।

वैदिक ज्योतिष में जब भी हम नक्षत्रों की बात करते हैं, हमें इन पहलुओं को जानना जरूरी होता है। साथ ही आपके व्यक्तित्व और स्वभाव का आईना होते हैं ये नक्षत्र। आप मानें या न मानें लेकिन जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है, उसका असर कहीं न कहीं आपके व्यवहार, जीवन शैली और व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है।

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